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रविवार, 6 जनवरी 2019

परमेश्वर के विश्वासियों को किस प्रकार की पीड़ा अवश्य सहनी चाहिए और पीड़ा का अर्थ।

6. परमेश्वर के विश्वासियों को किस प्रकार की पीड़ा अवश्य सहनी चाहिए और पीड़ा का अर्थ।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज अधिकाँश लोग यह महसूस नहीं करत: वे मानते हैं कि दुःख उठाने का कोई महत्व नहीं है, वे संसार के द्वारा त्यागे जाते हैं, उनके पारिवारिक जीवन में परेशानी होती है, वे परमेश्वर के प्रिय भी नहीं होते, और उनकी अपेक्षाएँ काफी निराशापूर्ण होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट एक विशेष बिंदु तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें बिलकुल धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, मनुष्य के कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, मनुष्य के क्लेश उतने अधिक होते हैं।

सोमवार, 17 दिसंबर 2018

परमेश्वर पर विश्वास करने वालों को अपने गंतव्य के लिए भले कार्यों से पर्याप्त होकर तैयार होना चाहिए।

7. परमेश्वर पर विश्वास करने वालों को अपने गंतव्य के लिए भले कार्यों से पर्याप्त होकर तैयार होना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मेरी दया उन पर व्यक्त होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और अपने आपको नकारते हैं। और दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का साक्षी है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे। जो लोग सभी तरह की दुष्टता कर चुके हैं, किन्तु जिन्होंने बहुत वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अभियोग से नहीं बचेंगे; वे भी, ऐसी आपदा जिसके समान युगों-युगों तक कदाचित ही देखी गई होगी, में पड़ते हुए, लगातार आंतक और भय की स्थिति में जीते रहेंगे। और केवल मेरे वे अनुयायी ही जिन्होंने मेरे प्रति निष्ठा दर्शायी है मेरी सामर्थ्य का आनंद लेंगे और तालियाँ बजाएँगे।

रविवार, 16 दिसंबर 2018

परमेश्वर के विश्वासियों को किस प्रकार की पीड़ा अवश्य सहनी चाहिए और पीड़ा का अर्थ।

6. परमेश्वर के विश्वासियों को किस प्रकार की पीड़ा अवश्य सहनी चाहिए और पीड़ा का अर्थ।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज अधिकाँश लोग यह महसूस नहीं करत: वे मानते हैं कि दुःख उठाने का कोई महत्व नहीं है, वे संसार के द्वारा त्यागे जाते हैं, उनके पारिवारिक जीवन में परेशानी होती है, वे परमेश्वर के प्रिय भी नहीं होते, और उनकी अपेक्षाएँ काफी निराशापूर्ण होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट एक विशेष बिंदु तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें बिलकुल धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, मनुष्य के कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, मनुष्य के क्लेश उतने अधिक होते हैं।

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

अपनी असलियत की सही पहचान

5. परमेश्वर पर विश्वास केवल शान्ति और आशीषों को खोजने के लिए ही नहीं होना चाहिए।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
आज, आपको सही रास्ते पर नियत अवश्य होना चाहिए क्योंकि तुम व्यावहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हो। परमेश्वर में विश्वास करके, तुम्हें सिर्फ़ आशीषों को ही नहीं खोजना चाहिए, बल्कि परमेश्वर को प्रेम करने और परमेश्वर को जानने की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रबुद्धता और तुम्हारी स्वयं की खोज के माध्यम से, तुम उसके वचन को खा और पी सकते हो, परमेश्वर के बारे में एक सच्ची समझ को विकसित कर सकते हो, और परमेश्वर के लिए एक सच्चा प्रेम रख सकते हो जो तुम्हारे हृदय से आता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम सबसे अधिक सच्चा है, इतना कि उसके लिए तुम्हारे प्रेम को कोई नष्ट नहीं कर सकता है या उसके लिए तुम्हारे प्रेम के मार्ग में कोई खड़ा नहीं हो सकता है। तब तुम परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते पर होते हो।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

पवित्र शिष्टता जो परमेश्वर के विश्वासियों को धारण करनी चाहिए

4. पवित्र शिष्टता जो परमेश्वर के विश्वासियों को धारण करनी चाहिए

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
वचनों का आज्ञापालन करता था। वह स्वभाविक रूप से सही समझ और सद्विवेक का था, और सामान्य मानवता का था। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने के बाद, उसकी मूल समझ, सद्विवेक, और मानवता मंदी हो गईं और शैतान के द्वारा खराब हो गईं। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और प्रेम को खो दिया है। मनुष्य की समझ धर्मपथ से हट गई है, उसकी समझ एक जानवर के समान हो गई है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक लगातार और गंभीर हो गई है। अभी तक मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, और केवल आँख बंद करके विरोध और विद्रोह करता है।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

परमेश्वर पर विश्वास में, तुम्हें परमेश्वर के साथ सामान्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए।

3. परमेश्वर पर विश्वास में, तुम्हें परमेश्वर के साथ सामान्य सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर में विश्वास करने में तुम्हें कम से कम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध रखने के विषय का समाधान करना चाहिए। परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध के बिना परमेश्वर में विश्वास करने का महत्व खो जाता है। परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध को स्थापित करना परमेश्वर की उपस्थिति में अपने हृदय को शांत करने के द्वारा ही किया जा सकता है। परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध को स्थापित करने का अर्थ है परमेश्वर के किसी भी कार्य पर संदेह न करना या उसका इनकार न करना, बल्कि उसके प्रति समर्पित रहना, और इससे बढ़कर इसका अर्थ है परमेश्वर की उपस्थिति में सही इरादों को रखना, स्वयं के बारे में न सोचते हुए हमेशा परमेश्वर के परिवार की बातों को सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में सोचना, फिर चाहे तुम कुछ भी क्यों न कर रहे हो, परमेश्वर के अवलोकन को स्वीकार करना और परमेश्वर के प्रबंधनों के प्रति समर्पण करना।

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

सच्चे मार्ग की खोज में तुम्हें तर्कशक्ति से सम्पन्न अवश्य होना चाहिए

2. सच्चे मार्ग की खोज में तुम्हें तर्कशक्ति से सम्पन्न अवश्य होना चाहिए

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर और मनुष्य को बराबर नहीं कहा जा सकता। उसका सार और उसका कार्य मनुष्य के लिये सर्वाधिक अथाह और समझ से परे है। यदि परमेश्वर व्यक्तिगत रूप में अपना कार्य न करे, और मनुष्यों के संसार में अपने वचन न कहें, तो मनुष्य कभी भी परमेश्वर की इच्छा को समझ नहीं सकता है, और इसलिए, यहाँ तक कि जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भी परमेश्वर को समर्पित कर दिया है, वे भी उसके अनुमोदन को पाने में सक्षम नहीं हैं। परमेश्वर के कार्य के बिना, चाहे मनुष्य कितना भी अच्छा करे, उसका कोई मूल्य नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचार से सदैव ऊँचे होंगे, और परमेश्वर की बुद्धि मनुष्यों के लिये अपरिमेय है।

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

परमेश्वर पर विश्वास में नए कार्य के प्रति लोगों के विरोध का स्रोत तुम्हें अवश्य मालूम होना चाहिए।

1. परमेश्वर पर विश्वास में नए कार्य के प्रति लोगों के विरोध का स्रोत तुम्हें अवश्य मालूम होना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मनुष्य के द्वारा परमेश्वर का विरोध करने का कारण, एक ओर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से, और दूसरी ओर, परमेश्वर के प्रति अज्ञानता और परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों की और मनुष्य के प्रति उनकी इच्छा की समझ की कमी से उत्पन्न होता है। इन दोनों पहलुओं का, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध के इतिहास में विलय होता है। नौसिखिए विश्वासी परमेश्वर का विरोध करते हैं क्योंकि ऐसा विरोध उनकी प्रकृति में होता है, जबकि कई वर्षों से विश्वास वाले लोगों में परमेश्वर का विरोध, उनके भ्रष्ट स्वभाव के अलावा, परमेश्वर के प्रति उनकी अज्ञानता का परिणाम है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

बाहरी अच्छे कर्मों और स्वभाव में परिवर्तनों के बीच अंतर

7. बाहरी अच्छे कर्मों और स्वभाव में परिवर्तनों के बीच अंतर

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
स्वभाव का परिवर्तन क्या है? तुम्हें सत्य का प्रेमी होना चाहिए, जैसे-जैसे तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हो, तुम्हें परमेश्वर के वचन के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार करना चाहिए, और अपने भीतर उपस्थित शैतानी विष से स्वयं के शुद्धिकरण के लिए सभी तरह की पीड़ाओं और परिशोधन का अनुभव करना चाहिए। इसे स्वभाव में परिवर्तन कहा जाता है। ... परमेश्वर के घर में जिस स्वभाव के परिवर्तन के बारे में बात की जाती है, उसका मतलब है कि एक व्यक्ति, क्योंकि वह सत्य को प्यार करता है और उसे स्वीकार कर सकता है, अंततः अपने अवज्ञाकारी और परमेश्वर-विरोधी स्वभाव को जान जाता है; वह समझता है कि मनुष्य का दूषण बहुत गहरा है और मनुष्य की व्यर्थता और धोखाधड़ी को समझता है।

रविवार, 9 दिसंबर 2018

तुम सच्चे और झूठे अगुवों और सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर कैसे बताते हो?

6. तुम सच्चे और झूठे अगुवों और सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर कैसे बताते हो?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है, और चाहे वे कितना भी काम करें, या उनकी पीड़ा कितनी भी बड़ी हो, या वे कितनी ही भाग-दौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं है, और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज, जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करते हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा में हैं; जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों से अनभिज्ञ हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, और परमेश्वर की सराहना ऐसे लोगों के लिए नहीं है। वह सेवा जो पवित्र आत्मा की वास्तविक उक्तियों से विभाजित हो, वह देह की और धारणाओं की सेवा है, और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होने में असमर्थ है।

शनिवार, 8 दिसंबर 2018

परमेश्वर का अनुसरण करने और लोगों का अनुसरण करने में अंतर

5. परमेश्वर का अनुसरण करने और लोगों का अनुसरण करने में अंतर

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज परमेश्वर के वास्तविक वचनों के अनुसार होनी चाहिए: चाहे तुम जीवन में प्रवेश कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ परमेश्वर के वास्तविक वचनों के आस-पास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि तुम्हारा समागम और अनुसरण परमेश्वर के वास्तविक शब्दों के आसपास केंद्रित नहीं होते हैं, तो तुम परमेश्वर के शब्दों के लिए एक अजनबी हो, और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से वंचित हो।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और परमेश्वर के चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" से

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

तुम सच्चे और झूठे मार्गों में, और सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर कैसे बता सकते हो?

4. तुम सच्चे और झूठे मार्गों में, और सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर कैसे बता सकते हो?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
सच्चे मार्ग की तलाश करने में सबसे बुनियादी सिद्धान्त क्या है? तुम्हें देखना होगा कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है कि नहीं, क्या ये वचन सत्य की अभिव्यक्ति हैं या नहीं, किसके लिए गवाही देनी है, और यह तुम्हारे लिए क्या ला सकता है। सच्चे मार्ग और गलत मार्ग के मध्य अंतर करने के लिए बुनियादी ज्ञान के कई पहलुओं की आवश्यकता होती है, जिनमें सबसे बुनियादी है यह बताना कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं। क्योंकि परमेश्वर पर विश्वास का मनुष्य का सार पवित्र आत्मा पर विश्वास है, और यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर पर उसका विश्वास इसलिए है क्योंकि यह देह परमेश्वर के आत्मा का मूर्तरूप है, जिसका अर्थ यह है कि ऐसा विश्वास पवित्र आत्मा पर विश्वास है।

गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

तुम सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर को कैसे बता सकते हो?

3. तुम सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच अंतर को कैसे बता सकते हो?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर के तत्व को स्वयं में धारण किए रहता है, और अपने कार्य में परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि को धारण करता है, और ये चीजें मनुष्य के लिये अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। मसीह पृथ्वी पर केवल परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि वह देह है जिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर कार्य पूर्ण करता है।

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

तुम्हें पवित्र आत्मा के और दुष्ट आत्माओं के कार्य के बीच में कैसे विभेद करना चाहिए?

2. तुम्हें पवित्र आत्मा के और दुष्ट आत्माओं के कार्य के बीच में कैसे विभेद करना चाहिए?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पवित्र आत्मा का कार्य कुल मिलाकर लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे लाभ प्राप्त कर सकें; यह कुल मिलाकर लोगों की उन्नति के विषय में है; ऐसा कोई कार्य नहीं है जो लोगों को लाभान्वित न करता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सत्य गहरा है या उथला, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन लोगों की क्षमता किसके समान है जो सत्य को स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी पवित्र आत्मा करता है, यह सब लोगों के लिए लाभदायक है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय अगुवाई करना और सकारात्मक प्रकाशन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता है।

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

तुम्हें परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य में कैसे विभेद करना चाहिए?

       परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:


अनुग्रह के युग में, यीशु ने भी काफ़ी बातचीत की और काफ़ी कार्य किया। वह यशायाह से किस प्रकार भिन्न था? वह दानिय्येल से किस प्रकार भिन्न था? क्या वह कोई भविष्यद्वक्ता था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह मसीहा है? उनके मध्य क्या भिन्न्ताएँ हैं? वे सभी मनुष्य थे जिन्होंने वचन बोले थे, और मनुष्य को उनके वचन लगभग एक से प्रतीत होते थे। उन सभी ने बातें की और कार्य किए। पुराने विधान के भविष्यवद्क्ताओं ने भविष्यवाणियाँ की, और उसी तरह से, यीशु भी वैसा ही कर सका। ऐसा क्यों है? यहाँ कार्य की प्रकृति के आधार पर भिन्नता है। इस मामले को समझने के लिए, तुम देह की प्रकृति पर विचार नहीं कर सकते हो और तुम्हें किसी व्यक्ति के वचनों की गहराई या सतहीपन पर विचार नहीं करना चाहिए। तुम्हें अवश्य हमेशा सबसे पहले उसके कार्य पर और उन प्रभावों पर विचार करना चाहिए जिसे उसका कार्य मनुष्य में प्राप्त करता है। उस समय यशायाह के द्वारा कही गई भविष्यवाणियों ने मनुष्य का जीवन प्रदान नहीं किया

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

देहधारी परमेश्वर के कार्य और पवित्रात्मा के कार्य के बीच में क्या अंतर है?

3. देहधारी परमेश्वर के कार्य और पवित्रात्मा के कार्य के बीच में क्या अंतर है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि देह में किए गए परमेश्वर के कार्य में अनेक अकल्पनीय मुश्किलें शामिल होती हैं, फिर भी वे प्रभाव जिन्हें वह अंततः हासिल करता है वे उन कार्यों से कहीं बढ़कर होते हैं जिन्हें आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। देह के कार्य में काफी कठिनाईयां साथ में जुड़ी होती हैं, और देह आत्मा के समान वैसी ही बड़ी पहचान को धारण नहीं कर सकता है, और आत्मा के समान उन्हीं अलौकिक कार्यों को क्रियान्वित नहीं कर सकता है, और वह आत्मा के समान उसी अधिकार को तो बिलकुल भी धारण नहीं कर सकता है। फिर भी इस साधारण देह के द्वारा किए गए कार्य का मूल-तत्व आत्मा के द्वारा सीधे तौर पर किए गए कार्य से कहीं अधिक श्रेष्ठ है, और यह देह स्वयं ही मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं का उत्तर है।

रविवार, 2 दिसंबर 2018

तुम्हें परमेश्वर देह बना के महत्व को अवश्य जानना चाहिए।

2. तुम्हें परमेश्वर देह बना के महत्व को अवश्य जानना चाहिए।

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
इस बार, परमेश्वर कार्य करने आत्मिक देह में नहीं, बल्कि एक एकदम साधारण देह में आया है। यह न केवल परमेश्वर के दूसरी बार देहधारण की देह है, बल्कि यह वही देह है जिसमें वह लौटकर आया है। यह बिलकुल साधारण देह है। इस देह में दूसरों से अलग कुछ भी नहीं है, परंतु तुम उससे वह सत्य ग्रहण कर सकते हो जिसके विषय में तुमने पहले कभी नहीं सुना होगा। यह तुच्छ देह, परमेश्वर के सभी सत्य-वचन का मूर्त रूप है, जो अंत के दिनों में परमेश्वर का काम करती है, और मनुष्यों के जानने के लिये यही परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव की अभिव्यक्ति है। क्या तुमने परमेश्वर को स्वर्ग में देखने की प्रबल अभिलाषा नहीं की?

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

देहधारण क्या है? देहधारण का सार क्या है?


परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
पहला देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर साढ़े तैंतीस साल रहा, फिर भी उसने अपनी सेवकाई को उन सालों में से केवल साढ़े तीन साल तक ही किया। अपना कार्य करने के दौरान और अपना कार्य आरम्भ करने से पहले, इन दोनों समयों में, वह अपनी सामान्य मानवता को धारण किए हुए था। वह अपनी साधारण मानवता में साढ़े तैंतीस साल तक रहा। पूरे साढ़े तीन साल तक उसने अपने आप को देहधारी परमेश्वर के रूप में प्रकट किया। अपनी सेवकाई का कार्य प्रारम्भ करने से पहले, अपनी दिव्यता का कोई भी चिन्ह प्रकट नहीं करते हुए, वह अपनी साधारण और सामान्य मानवता के साथ प्रकट हुआ, और यह केवल उसकी सेवकाई को औपचारिक तौर पर प्रारम्भ करने के बाद ही हुआ कि उसकी दिव्यता प्रदर्शित की गई थी।

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

बचाए जाने एवं सिद्ध बनाए जाने के लिए तुम्हें परमेश्वर पर किस प्रकार विश्वास करना चाहिए?

अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

5. बचाए जाने एवं सिद्ध बनाए जाने के लिए तुम्हें परमेश्वर पर किस प्रकार विश्वास करना चाहिए?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
यद्यपि बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किंतु बहुत कम लोग समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ क्या है, और परमेश्वर के मन के अनुरूप बनने के लिये उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यद्यपि लोग "परमेश्वर" शब्द और "परमेश्वर का कार्य" जैसे वाक्यांश से परिचित हैं, किंतु वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं, और उससे भी कम वे उसके कार्य को जानते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तब वे सभी जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं, वे दुविधायुक्त विश्वास रखते हैं। लोग परमेश्वर पर विश्वास करने को गंभीरता से नहीं लेते हैं, क्योंकि परमेश्वर पर विश्वास करना उनके लिये अत्यधिक अनजाना और अजीब है। इस प्रकार, वे परमेश्वर की माँग से कम पड़ते हैं।

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरण के कार्य का महत्व।

अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।

4. परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरण के कार्य का महत्व।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
लोगों की कौन सी आंतरिक स्थिति पर यह सब परीक्षणों को लक्ष्य किया जाता है? ये लोगों के विद्रोही स्वभाव को लक्षित करती हैं जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के अयोग्य है। लोगों के भीतर बहुत सी अशुद्ध बातें हैं, और बहुत सा पांखड भरा हुआ है, और इसलिए परमेश्वर उन्हें परीक्षाओं के आधीन करता है ताकि उन्हें शुद्ध बना सके। ...

Hindi Gospel Video "वार्तालाप" क्लिप 6 - ईसाई किस प्रकार सीसीपी के "चारे की तरह परिवार का इस्तेमाल" का जवाब देते हैं

Hindi Gospel Video "वार्तालाप" क्लिप 6 - ईसाई किस प्रकार सीसीपी के "चारे की तरह परिवार का इस्तेमाल" का जवाब देते है...