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रविवार, 9 दिसंबर 2018

तुम सच्चे और झूठे अगुवों और सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर कैसे बताते हो?

6. तुम सच्चे और झूठे अगुवों और सच्चे और झूठे चरवाहों के बीच अंतर कैसे बताते हो?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है, और चाहे वे कितना भी काम करें, या उनकी पीड़ा कितनी भी बड़ी हो, या वे कितनी ही भाग-दौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं है, और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज, जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों का पालन करते हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा में हैं; जो लोग परमेश्वर के वास्तविक वचनों से अनभिज्ञ हैं, वे पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, और परमेश्वर की सराहना ऐसे लोगों के लिए नहीं है। वह सेवा जो पवित्र आत्मा की वास्तविक उक्तियों से विभाजित हो, वह देह की और धारणाओं की सेवा है, और यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होने में असमर्थ है। यदि लोग धार्मिक अवधारणाओं में रहते हैं, तो वे ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं जो परमेश्वर की इच्छा के लिए उपयुक्त हो, और भले ही वे परमेश्वर की सेवा करें, वे अपनी कल्पना और अवधारणाओं के घेरे में सेवा करते हैं, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं वे परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो उसके दिल के मुताबिक हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता है जो कि धारणाओं और देह की हो। यदि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वे अवधारणाओं के बीच रहते हैं, और ऐसे लोगों की सेवा दखल देती है और परेशान करती है। ऐसी सेवा परमेश्वर के विरूद्ध चलती है, और इस प्रकार जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं; जो लोग परमेश्वर के पदचिन्हों पर चलने में असमर्थ हैं, वे निश्चित रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के साथ सुसंगत होने में असमर्थ हैं। "पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण" करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना, और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल ऐसा व्यक्ति ही है जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा की धारा में है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने के लिए सक्षम हैं, बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं, और मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य के प्रकृति और सार को भी, परमेश्वर के नवीनतम कार्य से जान सकते हैं; इसके अलावा, वे अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं, और जो वास्तव में सही राह को हासिल कर चुके हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य से हटा दिए गए हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, और जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। ऐसा लोग खुले आम परमेश्वर का विरोध इसलिए करते हैं कि परमेश्वर ने नया कार्य किया है, और परमेश्वर की छवि उनकी धारणाओं के अनुरूप नहीं है—जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर का खुले आम विरोध करते हैं और परमेश्वर पर निर्णय देते हैं, जिससे वे स्वयं के लिए परमेश्वर की घृणा और अस्वीकृति उत्पन्न करते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और परमेश्वर के चरण-चिन्हों का अनुसरण कर" से
क्या कई लोग इसलिए परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य में बाधा नहीं डालते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के विभिन्न और विविधतापूर्ण कार्यों को नहीं जानते हैं, और इसके अलावा, क्योंकि वे केवल चुटकीभर ज्ञान और सिद्धांत से संपन्न होते हैं जिके भीतर वे पवित्र आत्मा के कार्य को मापते हैं? यद्यपि इस प्रकार के लोगों का अनुभव केवल सतही होता है, किन्तु वे घमण्डी और आसक्त प्रकृति के होते हैं, और वे पवित्र आत्मा के कार्य को अवमानना से देखते हैं, पवित्र आत्मा के अनुशासनों की उपेक्षा करते हैं और इसके अलावा, पवित्र आत्मा के कार्यों की "पुष्टि" करने के लिए अपने पुराने तुच्छ तर्कों का उपयोग करते हैं। वे एक नाटक भी करते हैं, और अपनी स्वयं की शिक्षा और पाण्डित्य पर पूरी तरह से आश्वस्त होते हैं, और यह कि वे संसार भर में यात्रा करने में सक्षम होते हैं। क्या ये ऐसे लोग नहीं हैं जो पवित्र आत्मा के द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकार किए गए हैं और क्या ये नए युग के द्वारा हटा नहीं दिए जाएँगे? क्या ये वही अदूरदर्शी छोटे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के सामने आते हैं और खुले आम उसका विरोध करते हैं, जो केवल यह दिखावा करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कितने चालाक हैं? बाइबिल के अल्प ज्ञान के साथ, वे संसार के "शैक्षणिक समुदाय" में पैर पसारने की कोशिश करते हैं, लोगों को सिखाने के लिए केवल सतही सिद्धांतों के साथ, वे पवित्र आत्मा के कार्य को पलटने का प्रयत्न करते हैं, और इसे अपने ही स्वयं के विचारों की प्रक्रिया के चारों ओर घूमाते रहने का प्रयास करते हैं, और अदूरदर्शी की तरह हैं, वे एक ही झलक में परमेश्वर के 6000 सालों के कार्यों को देखने की कोशिश करते हैं। क्या इन लोगों के पास बातचीत करने का कोई भी कारण है? वास्तव में, परमेश्वर के बारे में लोगों को जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही धीमा वे उसके कार्य का आँकलन करने में होते हैं। इसके अलावा, आज वे परमेश्वर के कार्य के बारे में अपने ज्ञान की बहुत ही कम बातचीत करते हैं, बल्कि वे अपने निर्णय में जल्दबाज़ी नहीं करते हैं। लोग परमेश्वर के बारे में जितना कम जानते हैं, उतना ही अधिक वे घमण्डी और अतिआत्मविश्वासी होते हैं और उतना ही अधिक बेहूदगी से परमेश्वर के अस्तित्व की घोषणा करते हैं—फिर भी वे केवल सिद्धांत की बात ही करते हैं और कोई भी वास्तविक प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते हैं। इस प्रकार के लोगों का कोई मूल्य नहीं होता है। जो पवित्र आत्मा के कार्य को एक खेल की तरह देखते हैं वे ओछे होते हैं! जो लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य का सामना करते समय सचेत नहीं होते हैं, जो अपना मुँह चलाते रहते हैं, वे आलोचनात्मक होते हैं, जो पवित्र आत्मा के धर्मी कार्यों को इनकार करने की अपनी प्राकृतिक सहज प्रवृत्ति पर लगाम नहीं लगाते हैं और उसका अपमान और ईशनिंदा करते हैं—क्या इस प्रकार के असभ्य लोग पवित्र आत्मा के कार्य के बारे में अनभिज्ञ नहीं रहते हैं? इसके अलावा, क्या वे अभिमानी, अंतर्निहित रूप से घमण्डी और अशासनीय नहीं हैं? भले ही ऐसा दिन आए जब ऐसे लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार करें, तब भी परमेश्वर उन्हें सहन नहीं करेगा। न केवल वे उन्हें तुच्छ समझते हैं जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, बल्कि परमेश्वर स्वयं के विरुद्ध भी ईशनिंदा करते हैं। इस प्रकार के उजड्ड लोग, न तो इस युग में और न ही आने वाले युग में, क्षमा नहीं किए जाएँगे, और वे हमेशा के लिए नरक में सड़ेंगे! इस प्रकार के असभ्य, आसक्त लोग परमेश्वर में भरोसा करने का दिखावा करते हैं और जितना अधिक वे ऐसा करते हैं, उतना ही अधिक उनकी परमेश्वर के प्रशासकीय आदेशों का उल्लंघन करने की संभावना होती है। क्या वे सभी घमण्डी ऐसे लोग नहीं हैं जो स्वाभाविक रूप से उच्छृंखल हैं, और जिन्होंने कभी भी किसी का भी आज्ञापालन नहीं किया है, जो सभी इसी मार्ग पर चलते हैं? क्या वे दिन प्रतिदिन परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं, वह जो हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है" से
ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है, ऐसे व्यक्ति ने कभी भी समर्पण करने का जरा सा भी इरादा नहीं दिखाया है, और कभी भी खुशी से समर्पण नहीं दिखाया है और अपने आपको दीन नहीं बनाया है। वह दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाता है और कभी भी किसी के प्रति भी समर्पण नहीं दिख्ता है। परमेश्वर के सामने, वह स्वयं को वचन का उपदेश देने में सबसे ज़्यादा निपुण समझता है और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझता है। वह उस अनमोल ख़जाने को कभी नहीं छोड़ता है जो पहले से ही उसके अधिकार में है, बल्कि आराधना करने, दूसरों को उसके बारे में उपदेश देने के लिए, उन्हें अपने परिवार की विरासत मानता है, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए उनका उपयोग करता है जो उसकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में कुछ संख्या में ऐसे लोग हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे "अदम्य नायक" हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "जो सचमुच में आज्ञाकारी हैं वे निश्चय ही परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" से
तुम परमेश्वर की सेवा अपने प्राकृतिक स्वभाव से, और अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार करते हो; इसके अलावा, तुम सोचते रहते हो कि जो कुछ भी तुम पसंद करते हो, उसे परमेश्वर पसंद करता है, और जिस किसी को भी तुम पसंद नहीं करते हो परमेश्वर उससे घृणा करता है, और तुम्हारा कार्य पूर्णतः तुम्हारी प्राथमिकताओं द्वारा मार्गदर्शित होता हैं। क्या इसे परमेश्वर की सेवा कह सकते हैं? अंततः तुम्हारे जीवन स्वभाव में रत्ती भर भी सुधार नहीं आएगा। वस्तुतः, तुम और हठीले बन जाओगे क्योंकि तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो, और इससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव गहराई तक समा जाएगा। अपने स्वयं के अन्दर, तुम परमेश्वर की सेवा के सिद्धान्त विकसित कर लोगे जो तुम्हारे स्वयं के चरित्र पर आधारित, और उस अनुभव से अधिक कुछ नहीं होंगे जो तुम्हारे स्वयं के स्वभाव के अनुसार सेवा करने से प्राप्त हुआ होगा। यह मानवीय अनुभव और सीख है। यह मनुष्य के जीवन का दर्शनशास्त्र है। इस तरह के लोग फरीसियों और धर्म के अधिकारियों में से होते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "धार्मिक सेवा समाप्त करो" से
वह कार्य जो मनुष्य के दिमाग में होता है उसे बहुत ही आसानी से मनुष्य के द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, इस धार्मिक संसार में पास्टर एवं अगुवे अपने कार्य को करने के लिए अपने वरदानों एवं पदों पर भरोसा रखते हैं। ऐसे लोग जो लोग लम्बे समय से उनका अनुसरण करते हैं वे उनके वरदानों के द्वारा संक्रमित हो जाएंगे और जो वे हैं उनमें से कुछ के द्वारा उन्हें प्रभावित किया जाएगा। वे लोगों के वरदानों, योग्यताओं एवं ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, और वे कुछ अलौकिक कार्यों और अनेक गम्भीर अवास्तविक सिद्धान्तों पर ध्यान देते हैं (हाँ वास्तव में, इन गम्भीर सिद्धान्तों को हासिल नहीं किया जा सकता है)। वे लोगों के स्वभाव के परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं, किन्तु इसके बजाए वे लोगों के प्रचार एवं कार्य करने की योग्यताओं को प्रशिक्षित करने, और लोगों के ज्ञान एवं समृद्ध धार्मिक सिद्धान्तों को बेहतर बनाने के ऊपर ध्यान केन्द्रित करते हैं। वे इस पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं कि लोगों के स्वभाव में कितना परिवर्तन हुआ है या इस पर कि लोग सत्य को कितना समझते हैं। वे लोगों के मूल-तत्व के साथ अपने आपको नहीं जोड़ते हैं, और वे लोगों की सामान्य एवं असमान्य दशाओं को जानने की कोशिश तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। वे लोगों की धारणाओं का विरोध नहीं करते हैं या उनकी धारणाओं को प्रगट नहीं करते हैं, और वे अपनी कमियों या भ्रष्टता में सुधार तो बिलकुल भी नहीं करते हैं। अधिकांश लोग जो उनका अनुसरण करते हैं वे अपने स्वाभाविक वरदानों के द्वारा सेवा करते हैं, और जो कुछ वे अभिव्यक्त करते हैं वह ज्ञान एवं अस्पष्ट धार्मिक सत्य है, जिनका वास्तविकता के साथ कोई नाता नहीं है और वे लोगों को जीवन प्रदान में पूरी तरह से असमर्थ हैं। वास्तव में, उनके कार्य का मूल-तत्व प्रतिभाओं का पोषण करना है, शून्य के साथ किसी व्यक्ति का पोषण करना है कि वह एक योग्य सेमेनरी स्नातक बन जाए जो बाद में काम एवं अगुवाई करने के लिए जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का काम" से
तुम उतना ज्ञान बोलने में सक्षम हो जितना कि समुद्र तट पर रेत है, फिर भी इसमें कोई वास्तविक पथ नहीं है। इस में, क्या तुम लोगों को मूर्ख नहीं बना रहे हो? क्या तुम सिर्फ बड़ी बड़ी बातें नहीं कर रहे हो? इस तरह से कार्य करना लोगों के लिए हानिकारक है! जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना ही यह वास्तविकता से रहित है, और उतना अधिक लोगों को वास्तविकता में ले जाने में असमर्थ है; जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना अधिक तुमसे परमेश्वर की उपेक्षा और उनका विरोध करवाता है। सबसे महान सिद्धांतों को अनमोल खजाने की तरह न समझो; वे घातक हैं, और किसी कार्य के नहीं है! हो सकता है कि कुछ लोग सबसे महान सिद्धांतों की बात करने में सक्षम हों-लेकिन ऐसे सिद्धांतों में वास्तविकता कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अनुभव नहीं किया है, और इस प्रकार उनके पास अभ्यास करने का कोई मार्ग नहीं है। ऐसे लोग मनुष्य को सही मार्ग पर ले जाने में असमर्थ हैं, और केवल लोगों को पथभ्रष्ट करेंगे। क्या यह लोगों के लिए हानिकारक नहीं है? कम से कम, तुमको वर्तमान परेशानियों को हल करने और लोगों को प्रवेश प्राप्त करने देने में सक्षम होना होगा; केवल यह भक्ति के रूप में मायने रखता है, और उसके बाद ही तुम परमेश्वर के लिए कार्य करने के लिए योग्य होगे। हमेशा भव्य, कल्पित शब्दों में बात न करो, और लोगों को बाध्य न करो और उन्हें अपनी अनुचित प्रथाओं के साथ अपना आज्ञापालन न करवाओ। ऐसा करने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, और यह केवल लोगों के भ्रम को बढ़ा सकता है। लोगों का इस तरह से नेतृत्व करने से कई तरह के नियम पैदा हो जायेंगे, जिससे लोग तुमसे घृणा करेंगे। यह मनुष्य की कमी है, और यह वास्तव में असहनीय है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वास्तविकता पर अधिक ध्यान" से
तुम लोगों का ज्ञान केवल कुछ समय के लिए लोगों को पोषित कर सकता है जैसे-जैसे समय बीतता है, यदि तुम वही एक बात कहते रहे, तो कुछ लोग इसे जान लेंगे; वे कहेंगे कि तुम अत्यधिक सतही हो, तुममें गहराई की कमी है। तुम्हारे पास सिद्धांतों की बात कहकर लोगों को धोखा देने की कोशिश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। अगर तुम इसे हमेशा इस तरह से जारी रखोगे, तो तुम्हारे नीचे के लोग तुम्हारे तरीकों, कदमों, और परमेश्वर में विश्वास करने और अनुभव करने के तुम्हारे प्रतिमान का अनुसरण करेंगे, और वे उन शब्दों और सिद्धांतों को व्यवहार में रखेंगे, और अंततः, तुम जिस तरह की बातें करते हो, वे तुम्हारा एक उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करेंगे। तुम सिद्धांतों की बात करने के लिए लोगों की अगुआई करते हो, और तुम्हारे नीचे के लोग तुम से सिद्धांतों को सीखेंगे, और जैसे-जैसे बात आगे बढ़ेगी, तुम एक गलत रास्ता अपना चुके होगे। तुम्हारे नीचे के सभी लोग तुम्हारा अनुसरण करते हैं ... हर पंथ और संप्रदाय के नेताओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ विद्या तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने नेताओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे तरीके से प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में उससे परामर्श करना है।‘ देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब नेता क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-शत्रु, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "केवल सत्य का अनुसरण ही परमेश्वर में सच्चा विश्वास है" से
आप लोगों का "सत्य का सार प्रस्तुत करना" लोगों को सत्य से जीवन प्राप्त करने या अपने स्वभाव में परिवर्तन प्राप्त करने देने के लिए नहीं किया जाता है। इसके बजाय, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि लोग सत्य के भीतर से कुछ ज्ञान और सिद्धांतों में निपुणता प्राप्त कर सकें। वे ऐसे प्रतीत होते हैं मानो कि वे परमेश्वर के कार्य के पीछे के प्रयोजन को समझते हैं, जबकि वास्तव में उन्होंने केवल सिद्धांत के कुछ शब्दों में निपुणता हासिल की है। वे सत्य के मर्म को नहीं समझते हैं, और यह धर्मशास्त्र का अध्ययन करने या बाइबल पढ़ने से भिन्न नहीं है। आप हमेशा इन पुस्तकों या उन सामग्रियों को छाँट रहे हैं, और इसलिए सिद्धांत के इस पहलू या ज्ञान के उस पहलू को धारण करने वाले बन गए हैं। आप सिद्धांतों के प्रथम श्रेणी के वक्ता हैं - लेकिन जब आप बोल लेते हैं तो क्या होता है? तब लोग अनुभव करने में असमर्थ होते हैं, उन्हें परमेश्वर के कार्य की कोई समझ नहीं होती है और स्वयं की भी समझ नहीं होती है। अंत में, उन्होंने जो कुछ प्राप्त किया होगा वे होंगे सूत्र और नियम। ... उन वचनों के बारे में प्रश्न के बाद प्रश्न पूछ कर, फिर उत्तर दे कर, आप एक रूपरेखा या सारांश बनाते हैं, और आपको लगता है कि नीचे के लोग तब आसानी से उन्हें समझ सकते हैं। याद रखने में आसान होने के अलावा, एक नज़र में ये इन प्रश्नों के बारे में स्पष्ट हैं, और आपको लगता है कि इस तरह से कार्य करना बहुत अच्छा है। लेकिन वे जो समझ रहे हैं वह वास्तविक मर्म नहीं है; यह वास्तविकता से भिन्न है और सिर्फ सैद्धान्तिक शब्द हैं। तो यह बेहतर होगा कि आप इन चीजों को बिल्कुल भी नहीं करें। आप लोगों को ज्ञान को समझने और ज्ञान में निपुणता प्राप्त करने की ओर ले जाने के लिए ये कार्य करते हैं। आप अन्य लोगों को सिद्धान्तों में, धर्म में लाते हैं, और उनसे परमेश्वर का अनुसरण और धार्मिक सिद्धांतों के भीतर परमेश्वर में विश्वास करवाते हैं। क्या तब आप बस पॉल के समान नहीं हैं? ... अंत में उन्हें उन जगहों पर लाया जाएगा जहाँ वे सत्य का अनुभव नहीं कर सकते हैं और परमेश्वर के वचन का अनुभव नहीं कर सकते हैं, ऐसी जगह जहाँ वे स्वयं को केवल सिद्धांतों से सज्जित कर सकते हैं और उन पर चर्चा कर सकते हैं और जहाँ वे परमेश्वर को नहीं समझ सकते हैं। तब वे जो कुछ भी बोलेंगे, वह सभी सुखद-लगने-वाले सिद्धांत, सही सिद्धांत होंगे, लेकिन उनके भीतर कोई वास्तविकता नहीं होगी और उनके पास चलने के लिए कोई मार्ग नहीं होगा। इस प्रकार का मार्गदर्शन वास्तव में गंभीर नुकसान पहुँचाता है!
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख"से "सत्य के बिना परमेश्वर को अपमानित करना आसान है" से
खुद को कुछ सच्चाइयों से लैस करते हैं, अपनी परेशानियों को हल करने के लिए नहीं; हम उन्हें "निस्वार्थ लोग" कहते हैं। वे दूसरों को सच्चाई की कठपुतलियाँ और खुद को सच्चाई के स्वामी के रूप में मानते हैं, वे दूसरों को सच्चाई को कस कर पकड़े रहना और निष्क्रिय न होना सिखाते हैं, जबकि वे खुद दर्शकों की तरह बाजु में खड़े रहते हैं-ये किस प्रकार के लोग हैं? केवल दूसरों को भाषण देने के लिए सच्चाई के कुछ वचनों से लैस होना, जबकि स्वयं के विनाश को रोकने के लिए कुछ नहीं करना-यह कितना कितना दयनीय है! यदि उनके शब्द दूसरों की मदद कर सकते हैं, तो वे खुद की सहायता क्यों नहीं कर सकते हैं? हमें उनको ढोंगी कहना चाहिए, जिनके पास कोई वास्तविकता नहीं है। वे दूसरों के लिए सच्चाई के वचनों की आपूर्ति करते हैं और दूसरों को उनसे अभ्यास करने का आग्रह करते हैं, लेकिन खुद अभ्यास करने की कोई कोशिश नहीं करते हैं-क्या वे घृणा के योग्य नहीं हैं? स्पष्ट रूप से, वे स्वयं तो इसे कर नहीं सकते, फिर भी वे दूसरों को सच्चाई के वचनों को आचरण में लागू करने के लिए मजबूर करते हैं-यह एक कैसा क्रूर तरीका है! वे दूसरों की मदद करने के लिए वास्तविकता का उपयोग नहीं कर रहे हैं; वे मातृत्व भरे एक दिल से दूसरों को मुहैय्या नहीं कर रहे हैं; वे सिर्फ लोगों को धोखा दे रहे हैं और उन्हें भ्रष्ट कर रहे हैं। यदि यह सिलसिला जारी रहता है-प्रत्येक व्यक्ति सच्चाई के वचनों को अगले को पारित करता रहे-तो क्या हर किसी का अंजाम यही न होगा कि सच्चाई के वचन तो बोले जाएँ पर उनका अभ्यास करने में असमर्थ बने रहें?
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख"से "जो लोग सच्चाई से प्रेम करते हैं, उनके पास अनुसरण करने का एक मार्ग होता है" से
वे जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में बाइबिल पढ़ते हैं, वे हर दिन बाइबिल पढ़ते हैं, फिर भी उनमें से एक भी परमेश्वर के काम के उद्देश्य को नहीं समझता है। एक भी परमेश्वर को नहीं जान पाता है; और यही नहीं, उनमें से एक भी परमेश्वर के हृदय के अनुरूप नहीं है। वे सबके सब व्यर्थ, अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पर खड़ा हैं। यद्यपि वे परमेश्वर के नाम पर धमकी देते हैं, किंतु वे जानबूझ कर उसका विरोध करते हैं। यद्यपि वे स्वयं को परमेश्वर का विश्वासी दर्शाते हैं किंतु ये वे हैं जो मनुष्यों का मांस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्मा को निगल जाते हैं, राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाना चाहते हैं या सही मार्ग का प्रयास करते हैं, और वे बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट उत्पन्न होती हैं। यद्यपि वे ‘मज़बूत देह’ वाले हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे ईसा-विरोधी हैं जो लोगों को परमेश्वर के विरोध में ले जाते हैं? वे कैसे जानेंगे कि ये जीवित शैतान हैं जो निगलने के लिए विशेष रूप से आत्माओं खोज रहे हैं?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से
मैं क्यों कहता हूँ कि धार्मिक जगत के वे लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं और कुकर्मी हैं, जो उसी प्रकार के हैं जैसा शैतान है? जब मैं कहता हूँ कि वे कुकर्मी हैं, तो ऐसा इसलिये कहता हूँ क्योंकि वे परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं अथवा उसकी बुद्धि को नही देखते हैं। परमेश्वर उन पर कभी भी अपने काम को प्रकट नहीं करता है; वे अंधे व्यक्ति हैं, वे परमेश्वर के कर्मों को नहीं देखते हैं। वे परमेश्वर द्वारा परित्यक्त हैं और उन्हें परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा बिल्कुल भी प्राप्त नहीं है, और पवित्र आत्मा का काम तो और भी कम प्राप्त है। वे जो परमेश्वर के काम के बिना हैं, वे कुकर्मी हैं और परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है"से "वे सब जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं"से
कार्यकर्ताओं का उत्तरदायित्व अपना कर्तव्य करना और परमेश्वर की इच्छा के आधार पर और परमेश्वर की अपेक्षाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार कलीसियाओं की अगुवाई करना है। इस प्रकार के कार्य को परमेश्वर का आशीष मिलता है। यदि कार्यकर्ता ऐसी तर्क-शक्ति से संपन्न नहीं हैं, और अपने तरीके से काम करके, चरवाहे के स्थान में खड़े होकर और लोगों को अपनी इच्छानुसार सिखा कर, अपनी धारणाओं कल्पनाओं और सिद्धांतों को जारी करके, और दूसरों से उन्हें स्वीकार करवा कर परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करते हैं, तो ऐसे कार्यकर्ता झूठे चरवाहे बन चुके हैं। कार्यकर्ताओं के झूठे चरवाहे बनने के बहुत से उदाहरण है और परमेश्वर ने अपने कार्य के प्रत्येक चरण में बहुत बड़ी संख्या मे ऐसे झूठे चरवाहों को निकाल दिया है। परमेश्वर ने एक बार कहा था कि प्रत्येक युग में बहुत से ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की सेवा करते हैं किन्तु फिर भी उसका तब तक विरोध भी करते हैं जब तक कि वे अंततः दूसरों से अपना आज्ञापालन और अपनी आराधना न करवा लें मानो वे परमेश्वर हों। यह "झूठे चरवाहों" की अभिव्यक्ति है। हम सभी को इसे चेतावनी के रूप में लेना चाहिए; कार्यकर्ताओं को अवश्य स्वभाव में परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, यदि वे इस पर ध्यान न दें और ढील दें, तब उनके लिए झूठे चरवाहे बनना अत्यंत आसान है। झूठे चरवाहों के काम में एक विशिष्ट जोर लोगों की झूठे चरवाहे के आशय के अनुसार अगुवाई करने पर होता है। वे जो कुछ भी करते, कहते, और या माँगते हैं, वह सब उनकी स्वयं की अभिकल्पना के लिए होता है, और वे इसे सभी सत्यों से शुद्धतम मानते हैं, वे सोचते हैं कि वे लोगों को मनुष्य बनना सिखा सकते हैं और अपनी स्वयं की अभिकल्पना के अनुसार लोगों को सत्य प्राप्त करने की अनुमति दे सकते हैं। ये झूठे चरवाहों की चरम अहंकार और स्व-धार्मिकता की अभिव्यक्तियाँ हैं। जो वास्तव में तर्कशील है उनके लिए, जब वे विश्वास करते हैं कि वे सही हैं, तो, यह निर्धारित करने के लिए कि उन्होंने जो कुछ भी समझा है वह सही हैं या नहीं, वे विशेष रूप में सत्य की खोज और संगति करते हैं, और दूसरों के विभिन्न विचारों और ज्ञान को सुनने में अपना ध्यान समर्पित करते हैं। उन सभी को जो परमेश्वर की काट-छाँट और अनुशासन से गुजरे हैं स्वयं की कुछ स्व-धार्मिकता और अहंकार को एक ओर रखने में समर्थ होना चाहिए। जब वे कार्य करते हैं तो वे परमेश्वर की इच्छा का उल्लंघन करने और ग़लत मार्ग लेने से बचने के लिए कदमों में सावधानी रखते हैं। उनके झूठे चरवाहे बन जाने के परिणामों के बारे में सोचना ही भयावह है। प्रत्येक कार्यकर्ता का अपना अभ्यास होता है, उन सबके अपने सिद्धांत होते हैं जिससे वे लोगों को सींचते हैं; वास्तव में, कोई भी इस बारे में पूरी तरह से संपष्ट नहीं हो सकता है कि उनके स्वयं के सिद्धांतों में कितना सत्य या मूल्य है। लोगों में स्व–जागरूकता का अभाव है, वे सत्य के अपने ज्ञान में बहुत ईमानदार और गहराई से विचारवान नहीं हैं, और वे मनमाने ढंग से कुछ बेकार की बातों को चुन लेते हैं, और उसे दूसरों को भी उपलब्ध कराए जाने वाले खज़ाने जैसा मानते हैं। क्या ऐसे अभ्यास झूठे चरवाहे का संकेत नहीं करते हैं? क्या स्वयं उनको और दूसरों को, दोनों को नुकसान नहीं होता है? इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि झूठे चरवाहे कितना अधिक कार्य करते हैं, वे लोगों को परमेश्वर के समक्ष नहीं लाने और उन्हें परमेश्वर को जानने और उसका आज्ञापालन करने की अनुमति देने में पूरी तरह से अक्षम हैं। झूठे चरवाहों द्वारा जो कुछ भी जारी किया जाता है वह केवल वचन और सिद्धांत, और धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं, और कोई भी चीज उनसे बढ़कर परमेश्वर के कार्य में रुकावट या उसका विरोध नहीं करती है।
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "'झूठे चरवाहों' का अर्थ" से
धार्मिक तरीके से सेवा का अर्थ है सेवा के लिए धार्मिक परम्परागत पद्धतियों और अभ्यासों के अनुसार सब कुछ करना, विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का कठोरतापूर्वक पालन करना, और केवल बाइबल के ज्ञान के द्वारा लोगों की अगुवाई करना। देखने में, यह जोरदार और प्रभावकारी लगता है, इसमें धर्म की झलक आती है, यह पूर्ण रूप में लोगों की धारणाओं के अनुकूल है, और उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। फिर भी यह पवित्रात्मा के कार्य से रहित है, जो अपदेश दिया जाता है वह धार्मिक सिद्धांत और बाइबल के ज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं है, यह धार्मिक धारणाओं से भरा है, इसमें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के बारे में कुछ नहीं है, और मण्डलियाँ गतिहीन एवं निर्जीव है। इस तरह की सेवा के साथ, जैसे-जैसे वर्ष बीतते हैं परमेश्वर के चुने हुए लोग तब भी सत्य से वंचित रहते हैं, उन्हे परमेश्वर का या परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का कोई ज्ञान नहीं होता है, और उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश नहीं किया है—क्योंकि लोग जिसकी खोज करते हैं वह उद्धार नहीं बल्कि अनुग्रह और आशीषें हैं, इस सीमा तक कि उनके जीवन स्वभाव में परिवर्तनों का कोई संकेत नहीं है। अनेक वर्षों तक सेवा करके, ये लोग अभी भी खाली हाथ हैं, उनके पास स्वयं के लिए दिखाने को कुछ नहीं है। धार्मिक पद्धतियों के अनुसार सेवा करने का यही परिणाम होता है। स्पष्ट रूप से, इस तरह के लोग जो परमेश्वर की सेवा करते हैं वे परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को नही समझते हैं, और वे नहीं जानते हैं कि पवित्र आत्मा के कार्य के साथ सहयोग करने का क्या अर्थ है। यह शुद्ध रूप से अंधे की अंधे के द्वारा अगुआई करने का मामला है, वे परमेश्वर के चुने हुओं को पथभ्रष्ट कर देते हैं, फरीसियों के जैसे वे परमेश्वर पर विश्वास तो करते हैं और फिर भी परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं, और वे मूलरूप से परमेश्वर के द्वारा उद्धार प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
"कलीसिया के कार्य की सहभागिता और प्रबन्धों के वार्षिक वृतांत(I)" में "केवल वे जो परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर प्रवेश करते हैं, वे ही परमेश्वर की सेवा का सही मार्ग ले सकते हैं" से
धार्मिक समुदाय के पादरी अपने ज्ञान का स्तर दर्शाने और धर्मपरायणता का प्रदर्शन करने के लिए हर अवसर का उपयोग करते हैं। उनका लक्ष्य है कि लोग उनकी ओर देखें और उनकी आराधना करें, और लोगों से अपना आज्ञापालन करवाने और अपना अनुसरण करवाने हेतु लोगों को आकर्षित करने के लिए वे अपनी स्वयं की छवि का उपयोग करते हैं, जिसका परिणाम होता है कि वे लोगों की बाइबल के ज्ञान की आराधना करने, हैसियत और सामर्थ्य की उपासना करने, और उपदेश देने में प्रवीणता की आराधना करने में अगुवाई करते हैं। इस तरह से, प्रत्येक कदम के साथ वे परमेश्वर का विरोध करने के मार्ग में लोगों की अगुवाई करते हैं। मसीह-विरोधियों के द्वारा अगुवाई किए गए वे एक अज्ञात परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे खोखले और कोरे सिद्धांतों को बोलने में अच्छे होते है और पाखण्ड में कुशल होते हैं, वे सभी परमेश्वर पर विश्वास तो करते हैं और फिर भी परमेश्वर के विरुद्ध विरोध और विद्रोह करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस तरह से झूठे अगुवे और मसीह-विरोधी कार्य करते हैं—एक ऐसा जिस में वे परमेश्वर की सेवा करते हैं और फिर भी उसका विरोध करते हैं—वह लोगों के लिये अत्यंत हानिकारक है।
"कलीसिया के कार्य की सहभागिता और प्रबन्धों के वार्षिक वृतांत (II)" में "मसीह विरोधियों और उनके रास्तों से बचाव अत्यावश्यक है" से
और पढ़ें:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-जो भी परमेश्वर में विश्वास करता है, उन्हें झूठे चरवाहों और मसीह-शत्रुओं को पहचानने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह धर्म को त्याग कर परमेश्वर की ओर लौट सके।

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