- परमेश्वर के वचनों का एक भजन
- परमेश्वर का कार्य कितना कठिन है
- I
- पृथ्वी पर ईश्वर के कार्य के चरणों में बड़ी कठिनाई है।
- मानव की कमज़ोरी, कमियाँ, अज्ञानता,
- मानव का बचपना और मानव का सब कुछ
- ईश्वर द्वारा ध्यान से योजनाबद्ध और विचार किया गया है।
- मानव जैसे काग़ज़ी बाघ है, कोई उसे उकसाने की हिम्मत नहीं करता।
- हो जाता पहले जैसा, ईश्वर की उपेक्षा करता,
- या भागता अपने सूअर बाप, कुतिया माँ के पास लिप्त होने को
- उनके शरीर की अशुद्ध चीज़ों में। कितनी बड़ी बाधा है ये!
- सभी चरणों पे ईश्वर सामना करता है परीक्षण और ख़तरे का।
- उसके वचन निष्कपट, सच्चे और द्वेष मुक्त हैं।
- जब कोई भी स्वीकार या समर्पण नहीं करता, उसका दिल टूटता है।
- वो मानव-जीवन के लिए रात-दिन श्रम और चिंता करता है।
- वो मानव की कमज़ोरी संग सहानुभूति रखता है।
- वो हर कार्य में बड़ी दुविधाएं, मुश्किलें सहता है।
- जानते हुए मानव कैसे अवज्ञाकारी, कमज़ोर, बचकाना, नाज़ुक है
- वो रात-दिन इन बातों को मन में सोचता रहता है।
- इसे किसने जाना है? वो किस पर विश्वास कर सकता है?
- इसे कौन समझ सकता है? ओह! ईश्वर का कार्य बहुत कठिन है।
- II
- ईश्वर मानव के पापों, कायर तरीकों से सदा घृणा करता है।
- वो चिंता करता है उसकी कमज़ोरी और आगामी राह की।
- और वो मानव के सभी वचनों और कर्मों को देखता है,
- ये सब उसे दया, क्रोध और दिल के दर्द से भर देता है।
- अब निर्दोष आख़िरकार जड़ हो चुके हैं,
- क्यों ईश्वर सदा उनके लिए चीज़ों को कठिन बनाता है?
- दुर्बल मानव अब दृढ़ रहने में सक्षम नहीं है।
- तो क्यों ईश्वर को सदा उससे नाराज़गी रहती है?
- मानव कमज़ोर और शक्तिहीन है, जीवन-शक्ति नहीं बची।
- क्यों डाँटना उसकी अवज्ञा के लिए?
- ईश्वर की धमकी का सामना कौन कर सकता है?
- III
- मानव नाज़ुक है, इसलिए ईश्वर ने निराशा की
- स्थिति में, अपना ग़ुस्सा दिल की गहराई में धकेल दिया है,
- ताकि मानव धीरे-धीरे ख़ुद पर विचार कर सके।
- फिर भी मानव, जो संकट में है, ईश्वरीय इच्छा नहीं सराहता।
- नहीं जानता उसे शैतानों के राजा ने रौंद दिया है,
- हमेशा वो परमेश्वर के ख़िलाफ़ ख़ुद को रखता है,
- या वो परमेश्वर के प्रति उदासीन है।
- किसने ईश्वर के वचनों को कभी गंभीरता से लिया है?
- "वचन देह में प्रकट होता है" से
- अनुशंसित: परमेश्वर के भजन
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