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सोमवार, 20 मई 2019

बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये



  • बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये
  •  
  • I
  • जब इसहाक को पेश किया बलिदान के लिये अब्राहम ने,
  • तो देखी परमेश्वर ने आज्ञाकारिता और ईमानदारी उसकी,
  • कामयाब रहा वो परमेश्वर के इम्तहान में।
  • परमेश्वर का विश्वासपात्र बनने, उसे जानने की योग्यता से
  • अभी भी दूर था मगर वो।
  • परमेश्वर से एक मन होने से, उसकी इच्छा पूरी करने से, बहुत दूर था वो।
  • बनाया जब से इंसान को उसने,
  • वफ़ादार विजेताओं का समूह बनाना चाहा परमेश्वर ने,
  • अपने साथ चलने को जो जानता हो उसके स्वभाव को।
  • बदली नहीं उसकी ये चाहत कभी।
  • रही है ये सदा वैसे ही।
  • उसकी उम्मीदें रहीं वैसे ही।
  • II
  • मन ही मन बेचैन और अकेला,
  • उदास रहा है परमेश्वर।
  • उसकी प्रबंधन योजना पूरी हो इसलिये,
  • उसका अपनी योजना को जल्दी सामने लाना ज़रूरी था।
  • उसकी इच्छा जल्दी पूरी हो इसलिये,
  • उसका सही लोगों को चुनना, हासिल करना ज़रूरी था।
  • परमेश्वर की ये तीव्र इच्छा बदली नहीं है आज भी।
  • बनाया जब से इंसान को उसने,
  • वफ़ादार विजेताओं का समूह बनाना चाहा परमेश्वर ने,
  • अपने साथ चलने को जो जानता हो उसके स्वभाव को।
  • बदली नहीं उसकी ये चाहत कभी।
  • रही है ये सदा वैसे ही।
  • उसकी उम्मीदें रहीं वैसे ही।
  • III
  • कितना भी करना पड़े इंतज़ार उसे,
  • रास्ता आगे का कितना भी मुश्किल हो,
  • इच्छित लक्ष्य कितने भी दूर हों,
  • हारा नहीं परमेश्वर कभी, बदली नहीं अपनी अपेक्षा उसने।
  • मज़बूत हैं इंसान के लिये उम्मीदें उसकी।
  • कह चुका वो बात अपनी, क्या समझते हो उसकी किसी इच्छा को तुम लोग?
  • एहसास फिलहाल तुम्हारा गहरा न हो,
  • हो जाएगा वक्त के साथ ये गहरा मगर।
  • बनाया जब से इंसान को उसने,
  • वफ़ादार विजेताओं का समूह बनाना चाहा परमेश्वर ने,
  • अपने साथ चलने को जो जानता हो उसके स्वभाव को।
  • बदली नहीं उसकी ये चाहत कभी।
  • रही है ये सदा वैसे ही।
  • उसकी उम्मीदें रहीं वैसे ही।
  •  
  • "वचन देह में प्रकट होता है" से

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