अध्याय 4 तुम्हें अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाईयों को अवश्य जानना चाहिए।
3.परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य का महत्व।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अंत के दिनों का कार्य, सभी को उनके स्वभाव के आधार पर पृथक करना, परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ गया है। परमेश्वर उन सभी को जिन्होंने उसके राज्य में प्रवेश कर लिया है अर्थात्, वे सभी लोग जो अंत तक उसके वफादार रहे हैं, स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। हालाँकि, जब तक स्वयं परमेश्वर का युग नहीं आ जाता है तब तक परमेश्वर जो कार्य करेगा वह मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य जीवन के बारे में पूछताछ करना नहीं, बल्कि उनके विद्रोह का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर उन सभी को शुद्ध करेगा जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं। वे सभी जिन्होंने आज के दिन तक परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण किया है वे हैं जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने आ गए हैं, इसलिए, हर एकेला व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को इसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है वह परमेश्वर द्वारा शुद्ध किए जाने की वस्तु है। दूसरे शब्दों में, हर कोई जो परमेश्वर के कार्य को इसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है वही परमेश्वर के न्याय की वस्तु है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से
जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य का भ्रष्ट मूल-तत्व है, मनुष्य का मूल-तत्व जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है, और मनुष्य के समस्त पाप हैं। परमेश्वर मनुष्य की छोटी-मोटी एवं मामूली त्रुटियों का न्याय नहीं करता है। न्याय का कार्य प्रतिनिधिक है, और इसे विशेषकर किसी निश्चित व्यक्ति के लिए क्रियान्वित नहीं किया जाता है। इसके बजाए, यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मानवजाति के न्याय को दर्शाने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को क्रियान्वित करने के द्वारा, देह में प्रगट परमेश्वर समूची मानवजाति के कार्य को दर्शाने के लिए अपने कार्य का उपयोग करता है, जिसके पश्चात् यह धीरे धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य भी इस प्रकार ही है। परमेश्वर किसी निश्चित किस्म के व्यक्ति या लोगों के किसी निश्चित समूह का न्याय नहीं करता है, परन्तु समूची मानवजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है - परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, उदाहरण के लिए, या उसके विरुद्ध मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालना, एवं इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वह परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य का मूल-तत्व है, और यह कार्य अंतिम दिनों के विजय का कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य एवं वचन जिसकी गवाही मनुष्य के द्वारा दी जाती है वे अंतिम दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसे पिछले समयों के दौरान मनुष्य के द्वारा सोचा विचारा गया था। ऐसा कार्य जिसे वर्तमान में देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया जा रहा है वह बिलकुल उस बड़े श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है" से
अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काँट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काँट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से
परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का सार मानवजाति को शुद्ध करना है, और यह अंतिम विश्राम के दिन के लिए है। अन्यथा, संपूर्ण मानवजाति अपने स्वयं के स्वभाव का अनुसरण करने या विश्राम में प्रवेश करने में समर्थ नहीं होगी। यह कार्य ही मानवजाति के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्ध करने का कार्य ही मानवजाति को उसकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा, और केवल उसका ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानव जाति की अवज्ञा की बातों को प्रकाश में लाएगा, फलस्वरूप, जिन्हें बचाया नहीं जा सकता है उनमें से जिन्हें बचाया जा सकता है उन्हें, और जो नहीं बचेंगे उनमें से जो बचेंगे उन्हें अलग करेगा। जब उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, तो जो शेष बचेंगे वे शुद्ध किए जाएँगे, और जब वे मानवजाति के उच्चतर राज्य में प्रवेश करेंगे तो एक अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का पृथ्वी पर आनंद उठाएँगे; दूसरे शब्दों में, वे मानवजाति के विश्राम में प्रवेश करेंगे और परमेश्वर के साथ-साथ रहेंगे। जो नहीं बच सकते हैं उनके ताड़ना और न्याय से गुजरने के बाद, उनके मूल स्वरूप पूर्णतः प्रकट हो जाएँगे; उसके बाद वे सबके सब नष्ट कर दिए जाएँगे और, शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर जीवित रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवजाति में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ये लोग अंतिम विश्राम के देश में प्रवेश करने के योग्य नहीं है, न ही ये लोग उस विश्राम के दिन में प्रवेश करने के योग्य हैं जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे, क्योंकि वे दण्ड के लक्ष्य हैं और दुष्ट हैं, और वे धार्मिक लोग नहीं हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे" से
लोगों को पूर्ण करता है, जो वास्तव में उससे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का एक स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहलेही आ चुके हैं। सभी चीजों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा। यही वह समय है जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल को प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते हैं,तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को प्रकट करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी चीजों का अंत प्रकट हो सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंगों को दिखाता है जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरा बुरे की ओर लौट जाएगा, अच्छा अच्छे की ओर लौट जाएगा, और लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से, सभी चीजों का अंत प्रकट होगा, ताकि बुराई को दंडित किया जाएग और अच्छे को पुरस्कृत किया जाएगा, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन नागरिक बन जाएँगे। सभी कार्य धर्मी ताड़ना और न्याय के माध्यम से अवश्य प्राप्त किया जाना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर रही है, केवल परमेश्वर का धर्मी स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय का है और जो अंत के दिनों दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपान्तरित और पूरा कर सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधर्मियों को गंभीर रूप से दण्डित कर सकता है। इसलिए, इस तरह का एक स्वभाव युग के महत्व से सम्पन्न होता है, और उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन प्रत्येक नए युग के कार्य के वास्ते है। परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने ढंग से और महत्व के बिना प्रकट नहीं करता है। यदि, जब अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का अंत प्रकट किया जाता है, परमेश्वर तब भी मनुष्य पर अक्षय करुणा और प्रेम अर्पित करता है, यदि वह अभी भी मनुष्य के प्रति प्रेममय है, और वह मनुष्य को धर्मी न्याय के अधीन नहीं करता है, किन्तु उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और माफ़ी दर्शाता है,यदि मनुष्य चाहे कितना ही गंभीर पाप करे वह, किसी धर्मी न्याय के बिना, उसे तब भी माफ़ कर देता है, तब क्या परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का कभी अंत होगा? इस तरह का कोई स्वभाव कब सही मंज़िल में मानव जाति का नेतृत्व करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, ऐसे न्यायाधीश को लें जो हमेशा प्रेममय, उदारहृदय और सौम्य हो। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता हो, और चाहे कोई भी हो वह लोगों के लिए प्रेममय और सहिष्णु रहता है। तब वह कब न्यायोचित निर्णय तक पहुँचने में सक्षम हो पाएगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धर्मी न्याय ही मनुष्य का वर्गीकरण कर सकता है और मनुष्य को एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह,परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धर्मी स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)" से
आज परमेश्वर तुम लोगों का न्याय करता है, और तुम लोगों को ताड़ना देता है, और तुम्हारी निंदा करता है, लेकिन जान लो कि तुम्हारी निंदा इसलिए है कि तुम स्वयं को जान सको। निन्दा, अभिशाप, न्याय, ताड़ना—ये सब इसलिए हैं ताकि तुम स्वयं को जान सको, ताकि तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तन हो जाए, और, इसके अलावा, ताकि तुम अपने महत्व को जान सको, और देख सको कि परमेश्वर के सभी कार्य धर्मी हैं, और उसके स्वभाव और उसके कार्य की आवश्यकताओं के अनुसार हैं, कि वह मनुष्य के उद्धार के लिए अपनी योजना के अनुसार कार्य करता है, और कि वह ही धर्मी परमेश्वर है जो मनुष्य को प्यार करता है, और मनुष्य को बचाता है, और जो मनुष्य का न्याय करता और उसे ताड़ित करता है। यदि तुम केवल यह जानते हो कि तुम दीन-हीन हैसियत के हो, और यह कि तुम भ्रष्ट और अवज्ञाकारी हो, परन्तु यह नहीं जानते हो कि परमेश्वर आज तुम में जो न्याय कर रहा है और ताड़ना दे रहा है उसके माध्यम से परमेश्वर अपने उद्धार के कार्य को स्पष्ट कर देना चाहता है, तो तुम्हारे पास अनुभव करने का कोई मार्ग नहीं है, आगे जारी रखने में सक्षम तो तुम बिल्कुल भी नहीं हो। परमेश्वर मारने, या नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि न्याय करने, श्राप देने, ताड़ना देने, और बचाने के लिए होआया है। अपनी 6000-वर्षीय प्रबंधन योजना के समापन से पहले—इससे पहले कि वे मनुष्य की प्रत्येक श्रेणी का अंत स्पष्ट करें—पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य उद्धार के लिए है, यह सब उन लोगों को पूरी तरह से पूर्ण बनाने, और उन्हें अपने प्रभुत्व के प्रति समर्पण में लाने के उद्देश्य है जो उसे प्रेम करते हैं।…मनुष्य के विचार से, उद्धार परमेश्वर का प्रेम है, और परमेश्वर का प्रेम ताड़ना, न्याय और श्राप नहीं हो सकता है; उद्धार में प्रेम, करुणा, और, इसके अलावा, सांत्वना के वचन अवश्य समाविष्ट होने चाहिए, और ये परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए अनगिनत आशीषों से युक्त अवश्य होने चाहिए। लोगों का मानना है कि जब परमेश्वर मनुष्य को बचाता है, तो वे उन्हें स्पर्श करके और अपने आशीषों और अनुग्रह के माध्यम से उनसे उनके हृदय समर्पित करवाकर ऐसा करता है। कहने का तात्पर्य है कि जब वह मनुष्य का स्पर्श करता है तो वह उसे बचाता है। इस तरह का उद्धार ऐसा उद्धार है जिसमें एक लेन-देन किया जा रहा है। केवल जब परमेश्वर उन्हें सौ गुना प्रदान करता है, तभी मनुष्य परमेश्वर के नाम के अधीन आएँगे, और परमेश्वर के लिए अच्छा करने और उन्हें महिमामण्डित का प्रयत्न करेंगे। यह मानव जाति के लिए परमेश्वर की अभिलाषा नहीं है। भ्रष्ट मानवता को बचाने के लिए परमेश्वर पृथ्वी पर कार्य करने आया है—इसमें कोई झूठ नहीं है; यदि नहीं, तो वह अपना कार्य करने के लिए व्यक्तिगत रूप से निश्चित रूप से नहीं आता। अतीत में, उद्धार का उसका साधन परम प्रेम और करुणा दिखाना रहा था, इतनी कि उसने संपूर्ण मानवजाति के बदले में अपना सर्वस्व शैतान को दे दिया। आज अतीत के जैसा कुछ नहीं है: आज, तुम लोगों का उद्धार, स्वभाव के अनुसार प्रत्येक के वर्गीकरण के दौरान, अंतिम दिनों के समय में होता है; तुम लोगों के उद्धार का साधन प्रेम या करुणा नहीं है, बल्कि ताड़ना और न्याय है ताकि मनुष्य को अधिक अच्छी तरह बचाया जा सके। इस प्रकार, तुम लोगों को जो भी प्राप्त होता है वह ताड़ना, न्याय और निष्ठुर मार है, लेकिन जान लें कि इस निर्दय मार में थोड़ा सा भी दण्ड नहीं है, जान लें कि इस बात की परवाह किए बिना कि मेरे वचन कितने कठोर हैं, तुम लोगों पर जो पड़ता है वह कुछ वचन ही है जो तुम लोगों को अत्यंत निर्दय प्रतीत होता है, और जान लें, कि इस बात की परवाह किए बिना कि मेरा क्रोध कितना अधिक है, तुम लोगों पर जो पड़ता है वे फिर भी शिक्षण के वचन हैं, और तुम लोगों को नुकसान पहुँचाना, या तुम लोगों को मार डालना मेरा आशय नहीं है। क्या यह सब सत्य नहीं है? जान लें कि आज, चाहे वह धर्मी न्याय हो या निष्ठुर शुद्धिकरण, सभी उद्धार के लिए है। इस बात की परवाह किए बिना कि चाहे आज स्वभाव के अनुसार प्रत्येक का वर्गीकरण है, या मनुष्य की श्रेणियाँ सामने लायी गई हैं, परमेश्वर के सभी कथन और कार्य उन लोगों को बचाने के लिए हैं जो परमेश्वर से प्यार करते हैं। धर्मी न्याय मनुष्य को शुद्ध करने के उद्देश्य से है, निर्दय शुद्धिकरण मनुष्य का परिमार्जन करने के उद्देश्य से है, कठोर वचन या ताड़ना सब शुद्ध करने के उद्देश्य से और उद्धार के लिए हैं। और इस प्रकार, उद्धार की आज की विधि अतीत की विधि के विपरीत है। आज, धर्मी न्याय तुम लोगों को बचाता है, और तुम लोगों में से प्रत्येक को स्वभाव के अनुसार वर्गीकृत करने का एक अच्छा साधन है, और निर्मम ताड़ना तुम लोगों के लिए सर्वोच्च उद्धार लाती है—और इस ताड़ना और न्याय का सामना होने पर तुम लोगों को क्या कहना है? क्या तुम लोगों ने शुरू से अंत तक उद्धार का आनंद नहीं लिया है? तुम लोगों ने देहधारी परमेश्वर को देखा है और उनकी सर्वसंभाव्यता और विवेक का एहसास किया है; इसके अलावा, तुमने बार-बार मार और अनुशासन का अनुभव किया है। लेकिन क्या तुम लोगों को सर्वोच्च अनुग्रह भी प्राप्त नहीं हुआ है? क्या तुम लोगों को प्राप्त हुए आशीष किसी भी अन्य की तुलना में अधिक नहीं हैं? तुम लोगों को प्राप्त हुए अनुग्रह सुलेमान के द्वारा उठाए गये महिमा और सम्पत्ति के आनंद की तुलना में कहीं अधिक विपुल हैं! इस बारे में विचार करें: यदि आगमन के पीछे मेरा इरादा तुम लोगों को निंदित करना और सज़ा देना होता, न कि तुम लोगों को बचाना, तो क्या तुम लोगों के दिन इतने लंबे समय तक टिकते? क्या तुम, मांस और रक्त के ये पापी प्राणी, आज तक जीवित रहते? यदि यह केवल तुम लोगों को दंड देने के लिए होता, तो मैं क्यों शरीर धारण करता और इस तरह के कठिन कार्य की शुरूआत करता? क्या तुम नश्वर-मात्र को दंडित करने के लिए एक वचन पर्याप्त नहीं होता? क्या तुम लोगों को निंदित करने के बाद अभी भी तुम लोगों को नष्ट करने का मेरा मन होगा? क्या तुम लोगों को अभी भी मेरे इन वचनों पर विश्वास नहीं है? क्या मैं केवल प्यार और करुणा के माध्यम से मनुष्य को बचा सकता हूँ? या मैं मनुष्यों को बचाने के लिए केवल सलीब पर चढ़ने का उपयोग कर सका था? क्या मेरा धर्मी स्वभाव मनुष्य को पूरी तरह आज्ञाकारी बनाने के लिए अनुकूल नहीं है? क्या यह मनुष्य को पूर्ण रूप से बचाने में अधिक सक्षम नहीं है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "तुम लोगों को हैसियत के आशीषों को अलग रखना चाहिए और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए" से
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