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गुरुवार, 3 जनवरी 2019

हमारे पाप क्षमा कर दिये गये हैं और प्रभु में विश्वास के जरिये हमें न्यायसंगत माना गया है, और साथ ही, हमने बहुत-सी चीज़ों का त्याग किया है, स्वयं को खपाया है, और प्रभु के लिए अनथक मेहनत की है। मुझे यकीन है कि इस प्रकार का विश्वास हमें स्वर्ग के राज्य में आरोहित होने देगा। आप ऐसा क्यों कहते हैं कि यह हमें स्वर्गिक राज्य में प्रवेश नहीं दिलायेगा?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)।
"पर जैसा तुम्हारा बुलानेवाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो। क्योंकि लिखा है, 'पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ'" (1 पतरस 1:15-16)।
"सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा" (इब्रानियों 12:14)।

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