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मंगलवार, 5 सितंबर 2017

केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है


जीवन का मार्ग कोई साधारण चीज़ नहीं है जो चाहे कोई भी प्राप्त कर ले, न ही इसे सभी के द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह इसलिए कि जीवन केवल परमेश्वर से ही आता है, कहने का अर्थ है कि केवल स्वयं परमेश्वर ही जीवन के तत्व का अधिकारी है, स्वयं परमेश्वर के बिना जीवन का मार्ग नहीं है, और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है, और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है। जब से उसने संसार को रचा है, परमेश्वर ने बहुत सा कार्य जीवन को महत्वपूर्ण बनाने के लिये किया है, बहुत सारा कार्य मनुष्य को जीवन प्रदान करने के लिए किया है और बहुत अधिक मूल्य चुकाया है ताकि मनुष्य जीवन को प्राप्त करे, क्योंकि परमेश्वर स्वयं ही अनन्त जीवन है, और वह स्वयं ही वह मार्ग है जिससे मनुष्य नया जन्म लेता है। परमेश्वर मनुष्य के हृदय से कभी भी दूर नहीं रहा है और हर समय उनके मध्य में रहता है। वह मनुष्यों के जीवन यापन की असली ताकत है, मनुष्य के अस्तित्व का आधार है, जन्म के बाद मनुष्य के अस्तित्व के लिए उर्वर संचय है। वह मनुष्य को नया जन्म लेने देता है, और प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने के लिये सक्षम बनाता है। उसकी सामर्थ्य के लिए और उसकी सदा जीवित रहने वाली जीवन की शक्ति के लिए धन्यवाद, मनुष्य पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहता है, जिसके द्वारा परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व के लिए मुख्य आधार बनती है और जिसके लिए परमेश्वर ने कीमत चुकाई है जिसे कोई भी साधारण मनुष्य कभी भी नहीं चुका सकता। परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी शक्ति पर प्रभुत्व कर सकती है; इसके अलावा, वह किसी भी शक्ति से अधिक है। उसका जीवन अनन्त काल का है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसके जीवन की शक्ति आसानी से किसी भी प्राणी या शत्रु की शक्ति से पराजित नहीं हो सकती। परमेश्वर की जीवन-शक्ति का अस्तित्व है, और अपनी शानदार चमक से चमकती है, चाहे वह कोई भी समय या स्थान क्यों न हो। परमेश्वर का जीवन सम्पूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी की उथल-पुथल के मध्य हमेशा के लिए अपरिवर्तित रहता है। हर चीज़ का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा, परन्तु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा। क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत है, और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से निकलता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व भी परमेश्वर की जीवन शक्ति से ही उद्भूत होता है। कोई वस्तु कितनी भी महत्वपूर्ण हो, परमेश्वर के प्रभुत्व से बढ़कर श्रेष्ठ नहीं हो सकती।, और कोई भी वस्तु शक्ति के साथ परमेश्वर के अधिकार की सीमा को तोड़ नहीं सकती है। इस प्रकार से, चाहे वे कोई भी क्यों न हों, सभी को परमेश्वर के अधिकार के अधीन ही समर्पित होना होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा के रहना होगा, और कोई भी उसके नियंत्रण से बच कर नहीं जा सकता है।


हो सकता है कि अब आप जीवन को प्राप्त करना चाहते हों या हो सकता है कि सत्य को प्राप्त करना चाहते हों। चाहे मामले कुछ भी क्यों न हो, आप परमेश्वर को खोजना चाहते हो, परमेश्वर को खोजने का अर्थ है कि आप उस पर भरोसा रख सकते हो, और वही आपको अनन्त जीवन प्रदान कर सकता है। यदि आप अनन्त जीवन को प्राप्त करने की इच्छा करते हो, तो आपको सबसे पहले अनन्त जीवन के स्रोत को समझने की आवश्यकता है, और यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर कहां है। मैं पहले ही कह चुका हूं कि केवल परमेश्वर का जीवन अपरिवर्तनीय है, और केवल परमेश्वर ही जीवन का मार्ग जानता है। चूंकि उसका जीवन ही अपरिवर्तनीय है, इसलिए वह अनन्त है; चूंकि केवल परमेश्वर के ही पास जीवन का मार्ग है, इसलिए परमेश्वर स्वयं ही अनन्त जीवन का मार्ग है। अत: सबसे पहले आपको जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर कहां है, और अनन्त जीवन के इस मार्ग को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। आइए, हम इन दोनों मामलों को अलग अलग तौर पर देखें।


यदि आप वास्तव में अनन्त जीवन के मार्ग को प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, और यदि आप इसको खोजने के लिए भूखे हैं, तो पहले इस प्रश्न का उत्तर दीजिएः आज परमेश्वर कहां है? हो सकता है कि आप कहें कि परमेश्वर स्वर्ग में रहता है, बिल्कुल - वह आपके घर में तो रहेगा नहीं हो सकता है कि आप कहें कि परमेश्वर हर चीज़ में बसता है। या आप कह सकते हैं कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में रहता है, या वह आत्मिक संसार में है। मैं इनमें से किसी से भी इन्कार नहीं करता हूं, परन्तु मैं इस मामले को स्पष्ट करना चाहता हूं। ऐसा कहना पूरी तरह से उचित नहीं होगा कि परमेश्वर मनुष्यों के हृदयों में रहता है, परन्तु न ही यह पूरी तरह से गलत है। इसका कारण यह है कि परमेश्वर में विश्वासियों के मध्य, कुछ लोग ऐसे हैं जिनका विश्वास सत्य है और कुछ ऐसे हैं जिनका विश्वास गलत है, कुछ र ऐसे हैं जिन्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त है और कुछ ऐसे हैं जिन्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं है। कुछ ऐसे हैं जो उसको प्रसन्न करते हैं कुछ ऐसे हैं जो उससे घृणा करते हैं, और कुछ ऐसे हैं जिन्हें वह सिद्ध बनाता है और कुछ ऐसे हैं जिन्हें वह मिटा देता है। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि परमेश्वर रहता है परन्तु कुछ ही लोगों के हृदयों में रहता है, और ये कुछ लोग निस्संदेह सच्चाई से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे जिन्हें परमेश्वर अनुमोदन प्रदान करता है, जिनसे वह प्रसन्न है और जिन्हें वह सिद्ध बनाता है। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के द्वारा अगुवाई प्राप्त करते हैं। चूंकि ये परमेश्वर के द्वारा अगुवाई प्राप्त करते हैं, इसलिए इन लोगों ने पहले से ही परमेश्वर के अनन्त जीवन के मार्ग के बारे में सुन लिया है और उस मार्ग को देख लिया है। जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं कि वह गलत है, वे परमेश्वर के द्वारा अनुमति प्राप्त किए हुए नहीं हैं, वे परमेश्वर के द्वारा तुच्छ जाने जाते हैं, वे परमेश्वर के द्वारा मिटा दिए जाते हैं - वे परमेश्वर के द्वारा अस्वीकार किए जाने के लिए बाध्य हैं, और बिना जीवन के मार्ग के रहने के लिए भी बाध्य हैं, और परमेश्वर के रहने के स्थान से भी अनभिज्ञ हैं। इसके विपरीत, जिनके हृदयों में परमेश्वर रहता है वे जानते हैं कि वह कहां रहता है। ये ही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने जीवन का मार्ग प्रदान किया है, और ये ही परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। अब, क्या आप जानते हो कि परमेश्वर कहां है? परमेश्वर मनुष्यों के हृदय में और मनुष्यों के पक्ष में रहता है। वह न केवल आत्मिक संसार में है, और सभी चीज़ों के ऊपर है, बल्कि उस पृथ्वी पर भी उसका वास है जहां मनुष्य का अस्तित्व है। इसलिए अत: अंत के दिनों के आगमन ने परमेश्वर के । कार्य के चरणों को नये प्रदेश में अग्रसर किया है। परमेश्वर ब्रह्म़ाण्ड की सभी चीज़ों पर प्रभुता रखता है, और वह मनुष्यों के हृदयों का मुख्य आधार है, और इसके अलावा, वह मनुष्यों के मध्य में रहता है। केवल इसी तरह से वह मानवजाति में जीवन का मार्ग ला सकता है और मनुष्य को जीवन के मार्ग में लेकर आता है, परमेश्वर धरती पा आकर मनुष्यों के बीच इसलिये रहता है ताकि मनुष्य जीवन का मार्ग प्राप्त कर सके और मनुष्य का अस्तित्व बना रह सके। इसी के साथ-साथ, परमेश्वर ब्रह्म़ाण्ड की सभी चीज़ों अधिकार रखता है, ताकिवे मनुष्यों के मध्य में उसके प्रबंधकारणीय कार्य में सहयोग प्रदान करें। इसलिए, यदि आप केवल इस सिद्धांत को मानते हो कि परमेश्वर स्वर्ग में है और मनुष्यों के हृदय में है, लेकिन मनुष्यों के मध्य परमेश्वर के अस्तित्व के सत्य को नहीं मानते, तो आप कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते, और सत्य का मार्ग कभी भी प्राप्त नहीं करोगे।


परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ ही साथ रहते हैं। जो सत्य को प्राप्त करने में असफल रहते हैं वे कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते। बिना मार्गदर्शन, सहायता और सत्य के प्रावधान के आप केवल संदेश, सिद्धांत और मृत्यु को ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन एक साथ उपस्थित रहते हैं। यदि आप सत्य के स्रोत को नहीं प्राप्त कर पाते, तो आप जीवन के पोषण को प्राप्त नहीं कर पाओगे; यदि आप जीवन के प्रावधान को प्राप्त नहीं कर सकते तो आपके जीवन में निश्चय ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं से दूरी होगी, आपकी सम्पूर्ण देह केवल देह होगी, आपकी घिनौनी देह। ध्यान रखिये कि किताबों की बातें जीवन के तौर पर नहीं गिनी जाती हैं, इतिहास के लेखों को सत्य के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता, और अतीत के सिद्धांत आज के समय में परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचनों का लेखा-जोखा नहीं माने जा सकते। केवल वही बात जो परमेश्वर ने पृथ्वी पर आकर और लोगों के बीच रहकर कही है, सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा है और कार्य करने का असली तरीका है। यदि आप अतीत के युगों में परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचनों को आज के संदर्भ में लागू करते हैं , और यदि आपको और बेहतर ढंग से व्यक्त करना हो आप ऐतिहासिक विरासत का एक विशेषज्ञ कहा जा सकता है। क्योंकि आप हमेशा उन कार्यों के सुरागों के बारे में विश्वास करते हैं जो परमेश्वर ने अतीत में किए हैं, केवल उन पदचिन्हों पर विश्वास करते हैं जो तब के हैं जब परमेश्वर लोगों के बीच रह कर कार्य किया करते थे।, और आप केवल उसी मार्ग पर विश्वास करते हैं जो परमेश्वर ने पुराने समय में अपने अनुयायियों को दिया था। आज के समय में आप परमेश्वर के कार्य के मार्गदर्शन के बारे में विश्वास नहीं करते, महिमामय मुखाकृति में विश्वास नहीं करते, और परमेश्वर के द्वारा आज के समय में व्यक्त किये गये सत्य के मार्ग पर विश्वास नहीं करते। अत: आप एक ऐसे दिवास्वप्न दर्शी हैं जो सच्चाई से कोसों दूर है। यदि आप अभी भी उन वचनों से चिपके रहेंगे जो जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो आप आशाहीन और एक निर्जीव काष्ठ के समान हैं। क्योंकि आप बहुत ही रूढ़िवादी, असभ्य हैं जो चीजों को तर्क की कसौटी पर नहीं कसते हैं।


परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, इसलिए मसीह जो लोगों को सत्य देता है वही परमेश्वर कहलाया। इसके बारे में और कुछ भी अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर के तत्व को स्वयं में धारण किए रहता है और परमेश्वर के स्वभाव को अपने कार्य में विवेक को धारण किये रहता है, और ये चीजें मनुष्य के लियेअप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। मसीह पृथ्वी पर केवल परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि वह देह हैजिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर कार्य पूर्ण करता है। यह वह देह नहीं है जो किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित की जा सके, बल्कि वह देह है, जो परमेश्वर के कार्य को पृथ्वी पर अच्छी तरह से करती है और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करती है, और अच्छी प्रकार से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान करती है। कभी न कभी, उन धोखेबाज़ मसीह का पतन होगा, हालांकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें किंचितमात्र भी मसीह का सार-तत्व नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूं कि मसीह की प्रमाणिकता मनुष्य के द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती है, परन्तु स्वयं परमेश्वर के द्वारा उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है। इस प्रकार , यदि आप वास्तव में जीवन का मार्ग खोजने के इच्छुक हैं, तो पहले आपको यह मानना होगा कि वह पृथ्वी पर आकर ही वह मनुष्यों को जीवन प्रदान करता है, और अंतिम दिनों में वह पृथ्वी पर आकर मनुष्यों में जीवन का मार्ग प्रदान करता है। यह अतीत नहीं है; यह आज हो रहा है।


अंतिम दिनों के मसीह जीवन लेकर आए, और सत्य का स्थायी एवं अनन्त मार्ग प्रदान किया। इसी सत्य के मार्ग के द्वारा मनुष्य जीवन को प्राप्त करेगा, और एक मात्र इसी मार्ग से मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेगा। यदि आप अंतिम दिनों के मसीह के द्वारा प्रदान किए गए जीवन के मार्ग को नहीं खोजते हैं, तो आप कभी भी यीशु के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पायेंगे और कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं बन पायेंगे क्योंकि आप इतिहास के कठपुतली और कैदी हैं। जो लोग नियमों, संदेशों के नियंत्रण में हैं और इतिहास की ज़ंजीरों में जकड़े हुए हैं वे कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और कभी भी सतत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने के योग्य नहीं बन सकते हैं। क्योंकि सिंहासन से प्रवाहित जीवन जल की अपेक्षा, उनके भीतर मैला पानी भरा है जो हज़ारों सालों से वहीं ठहरा हुआ है, जिनके पास जीवन का जल नहीं है वे हमेशा के लिए एक लाश, शैतान के खेलने की वस्तु और नरक की संतान बन जाएंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि आप केवल अतीत को पकड़े रहने की कोशिश करेंगे, केवल ठहरी हुई चीज़ों को पकड़ने की कोशिश में लगे रहेंगे, और यथास्थिति को बदलनेऔर इतिहास को तिलांजलि देने की कोशिश नहीं करेंगे, तो क्या आप हमेशा परमेश्वर के विरोध में नहीं रहेंगे? परमेश्वर के कार्य के चरण बहुत ही विशाल और सामर्थी हैं, जैसे कि हिलोरे मारती हुई लहरें और गरजता हुआ तूफान - फिर भी आप बैठकर निष्क्रियता से विनाश का इंतजार करते हैं, अपनी ही मूर्खता से चिपके रहते हैं और कुछ भी नहीं करते। इस प्रकार से, आपकोआंख मूंद्कर अनुसरण करने वाले के रूप में कैसे देखा जा सकता है? आप परमेश्वर को कैसे न्यायोचित ठहरा सकते हो कि आप उस परमेश्वर पर निर्भर रहोगे जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और आपकी पीली पड़ चुकी किताब के वचन आपको नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे कैसे आपको परमेश्वर के चरणबद्ध तरीके से चलने वाले कार्यों तक कैसे लेकर जायेंगे? वे आपको कैसे स्वर्ग लेकर जायेंगे? आपके हाथों में जो संदेश हैं वेआपको केवल अस्थायी सांत्वना ही दे सकते हैं, वह सत्य नहीं दे सकते जो जीवन देने में सक्षम है। जो शास्त्र आप पढ़ते हैं वे आपकी जिव्हा को आनंदित तो कर सकते हैं लेकिन ये वे विवेकपूर्ण वचन नहीं हैं जो आपको मानव जीवन का बोध करा सकें। ये वह मार्ग तो दिखा ही नहीं सकते जो आपको पूर्णता की ओर ले जायें। क्या यह भिन्नता आपके विचार-मंथन का कारण नहीं है? क्या यह आपको अपने भीतर समाहित रहस्यों को समझने के लिए अनुमति नहीं देता है? क्या आप अपने आप को परमेश्वर से मिलने के लिए स्वर्ग में ले जाने के योग्य हैं? परमेश्वर के आये बिना, क्या आप अपने आपको परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनन्द मानने के लिए स्वर्ग में ले जा सकते हैं क्या आप अभी भी स्वप्न देख रहे हैं? मैं आपको सुझाव देता हूं, कि आप स्वप्न देखना बंद कर दो, और उनकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहे हैं, इन अंतिम दिनों में कौन मनुष्यों को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप कभी भी सत्य को नहीं प्राप्त कर सकते, और कभी भी जीवन प्राप्त नहीं कर सकते हो।


जो मसीह के द्वारा कहे गए सत्य पर भरोसा किए बिना जीवन प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे हास्यपद मनुष्य हैं और जो मसीह के द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं वे कल्पना में ही खोए हुए हैं। इसलिए मैं यह कहता हूं कि लोग जो अंतिम दिनों में मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं वे हमेशा के लिए परमेश्वर के द्वारा तुच्छ समझे जाएंगे। इन अंतिम दिनों में मसीह मनुष्यों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का माध्यम है, जिसकी अवहेलना कोई भी नहीं कर सकता। मसीह के माध्यम बने बिना कोई भी परमेश्वर के द्वारा पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। परमेश्वर में आपका विश्वास है, और इसलिए आप उसके वचनों को स्वीकार करें और उसके मार्गों का पालन करें। बिना सत्य को प्राप्त किए या बिना जीवन के प्रावधान को स्वीकार किए आपको सिर्फ़ अनुग्रह प्राप्त करने के बारे में सोचना नहीं है। मसीह अंतिम दिनों में आता है ताकि वे सभी जो सच्चाई से उस पर विश्वास करते हैं उन्हें जीवन प्रदान किया जाए। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है और यही वह मार्ग है जिससे नए युग में प्रवेश करने वालों को अपनाना चाहिए। यदि आप उसे पहचानने में असमर्थ हैं, और उसकी भर्त्सना करते हैं, निंदा करते हैं और यहां तक कि उसे पीडा पहुंचाते हैं, तो आप अनन्त समय तक जलाए जाते रहने के लिए निर्धारित लर दिये गए हैं और आप कभी भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। इसी कारण से मसीह ही स्वयं पवित्र आत्मा और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना कार्य सौंपा है। इसलिए मैं कहता हूं कि अंतिम दिनों में जो मसीह के द्वारा कार्य किया गया है उसे स्वीकार नहीं करते हैंतो आप पवित्र आत्मा की निंदा करते हैं। और उसका प्रतिकार पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को सहना होगा वह सभी के लिए स्वत:-स्पष्ट है। मैं यह भी कहता हूं कि आप अंतिम दिनों में मसीह का विरोध करेंगे और उसे नकारेंगे, तो ऐसा कोई भी नहीं है जो आपके लिए सज़ा भुगत ले। इसके अलावा, फिर कभी आपको परमेश्वर अनुमोदन प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलेगा; यदि आप अपने आप अपने उद्धार की कोशिश भी करते हैं, तो आप कभी भी परमेश्वर का चेहरा नहीं देख पायेंगे। क्योंकि आप जिसका विरोध करते हैंवह मनुष्य नहीं है, जिसको नकार रहे हैं वह नन्हा सा प्राणी नहीं है, बल्किमसीह है। क्या आप परिणामों के बारे में जानते हैं? आपने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं की है, बल्किएक बहुत ही जघन्य अपराध किया है। इसलिए मैं प्रत्येक को सलाह देता हूं कि सत्य के सामने अपने ज़हरीले दांत मत दिखाओ, या लापरवाही से आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही आपको जीवन दिला सकता है और सत्य के अलावा कुछ भी आपको नया जन्म देने के लिए या परमेश्वर का चेहरा देखने के लिए अनुमति नहीं दे सकता है।


फुट नोटः


अ. मृतक लकड़ी का एक टुकड़ाः एक चीनी मुहावरा है, जिसका अर्थ “मदद से परे”है।







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