मेरी आवाज़ की घोषणाओं के भीतर मेरे कई इरादे छिपे होते हैं। परन्तु मनुष्य उनमें से किसी को भी जानता और समझता नहीं है, और मेरे हृदय को जानने या मेरे वचनों के भीतर से मेरी इच्छा का सहज ज्ञान होने में समर्थ हुए बिना, बाहर से मेरे वचनों को ग्रहण करता रहता है और उनका बाहर से ही अनुसरण करता रहता है।
भले ही मैंने अपने वचनों को स्पष्ट कर दिया है तब भी, क्या कोई समझा है? सिय्योन से मैं मानवजाति में आया। क्योंकि मैंने एक साधारण मनुष्य की मानवता को पहना और स्वयं को मनुष्य की त्वचा का वस्त्र पहना दिया है, मनुष्य मेरे प्रकटन को केवल बाहर से ही जान पाते हैं, किन्तु वे उस जीवन को नहीं जानते हैं जो मेरे भीतर रहता है, न ही परमेश्वर के आत्मा को पहचानते हैं, और केवल देह के मनुष्य को जानते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि वास्तविक परमेश्वर स्वयं ही तुम्हारे जानने के योग्य न हो? क्या ऐसा हो सकता है कि वास्तविक परमेश्वर उसे “विच्छेदित” करने की कोशिश के तुम्हारे प्रयास करने के अयोग्य हो? मैं सम्पूर्ण मानवजाति के भ्रष्टाचार से घृणा करता हूँ, परन्तु मैं उसकी कमज़ोरी पर दया महसूस करता हूँ। मैं भी सम्पूर्ण मानवजाति की पुरानी प्रकृति से साथ व्यवहार कर रहा हूँ। चीन के एक मेरे जन होने के नाते क्या तुम भी मानवजाति का एक हिस्सा नहीं हो? मेरे सम्पूर्ण लोगों के मध्य में, और सम्पूर्ण पुत्रों के मध्य में, एक है जिसे मैंने सम्पूर्ण मानवजाति में से चुना है, तुम सबसे निम्न समूह से नाता रखते हो। इस कारण से, मैंने बड़ी मात्रा में ऊर्जा, अत्यधिक मात्रा में प्रयास तुम्हारे ऊपर व्यय किए हैं। आज तुम तब भी आज उस धन्य जीवन को नहीं सँजो रहे हो जिसका तुम आज आनन्द ले रहे हो? क्या तुम अभी भी अपने हृदय को मेरे विरूद्ध विद्रोह करने के लिए कठोर नहीं कर रहे हो और अपनी स्वयं की रूपरेखाओं पर स्थित नहीं हो? क्या ऐसा नहीं था कि मुझे तब भी तुम्हारे लिए प्रेम और दया थी, सम्पूर्ण मानवजाति काफी समय पहले शैतान की क़ैदी बन गई थी और उसके मुँह के “स्वादिष्ट निवालों” में बदल गयी थी। आज, समस्त मानवजाति के मध्य, जिन्होंने मेरे लिए वास्तव में अपने तुम को व्यय कर दिया है और जो मुझे सचमुच में प्यार करते हैं वे अभी भी पर्याप्त रूप से दुर्लभ हैं कि एक ही हाथ की अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि आज “मेरे लोग” का शीर्षक[क] तुम लोगों की निजी सम्पत्ति बन चुका है? क्या तुम्हारा विवेक ठंडा पड़ गया है? क्या तुम सचमुच ऐसे लोग बनने के योग्य हो जिनकी मैं माँग करता हूँ? अतीत के बारे में सोचने पर, और आज को देखने पर, तुम लोगों में से किसने मेरे हृदय को संतुष्ट किया है? तुम में से किसने वास्तव में मेरे इरादों के लिए चिंता दिखाई है? यदि मैंने तुम लोगों को प्रेरित नहीं किया होता, तो तुम अभी भी नहीं जागे होते, बल्कि अभी ऐसे रह गए होते मानो कि किसी हिमित स्थिति में हो, और फिर, शीतनिद्रा की अवस्था में हो।
क्रुद्ध लहरों के मध्य, मनुष्य मेरे कोप को देखता है; उमड़-घउमड़ करते काले बादलों में, मनुष्य भयभीत हो जाते हैं, और नहीं जानते कि कहाँ भागें, मानो कि डरे हुए हों कि गर्जन और बारिश उन्हें बहा ले जाएँगे। फिर, बर्फ का घूमता हुआ तूफान तेजी से निकल जाता है, तो उनके मन तनावरहित और प्रकाशित हो जाते हैं जैसे ही वे प्रकृति के सुंदर दृश्यों से प्रसन्न होते हैं। परन्तु, ऐसे क्षणों में, उनमें से किसी ने भी कभी उस असीमित प्रेम का अनुभव किया है जो मैं मानवता के लिए रखता हूँ? उनके दिलों में सिर्फ़ मेरा स्वरूप होता है, परन्तु मेरी आत्मा का सार नहीं होता है: क्या ऐसा हो सकता है कि मनुष्य स्पष्ट रूप से मेरी अवहेलना कर रहा है? जब आँधी समाप्त हो जाती है, सभी मानवजाति ऐसी हो जाती है मानो फिर से नयी हो गयी हो, मानो कि, क्लेशों के माध्यम से शुद्धिकरण के उपरान्त, उन्हों पुनः ज्योति और जीवन प्राप्त कर लिया हो। क्या तुमने भी, मेरे द्वारा मारे गए आघातों को सहने के बाद, आज अच्छे भाग्य को प्राप्त नहीं किया? लेकिन, जब आज चला जाएगा और कल आएगा, क्या तुम मूसलाधार बारिश के बाद आई पवित्रता को बनाए रखने में समर्थ होगे? क्या तुम उस समर्पण को बनाए रखने में समर्थ होगे जो तुम्हारे शुद्धिकरण बाद के आया? क्या तुम आज की आज्ञाकारिता को बनाए रखने में समर्थ होगे? क्या तुम्हारा समर्पण दृढ़ और अपरिवर्तनीय रह सकता है? निश्चित रूप से यह ऐसी माँग नहीं है जो मनुष्य के द्वारा पूरा करने की क्षमता से परे हो? दिन प्रति दिन, मैं मनुष्यों के साथ रहता हूँ, और, मनुष्यों के बीच, मनुष्यों के साथ कार्य करता हूँ, किन्तु किसी ने भी कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया है। यदि मेरी आत्मा मार्गदर्शन के लिए नहीं होता, तो सम्पूर्ण मानवजाति में से कौन वर्तमान युग में अभी तक अस्तित्व में रहा होता? क्या ऐसा हो सकता कि, जब मैं कहता हूँ कि में मनुष्यों के साहचर्य में जीता और कार्य करता हूँ, तो क्या मैं अतिशयोक्ति पूर्ण कथन कह रहा हूँ? अतीत में, मैंने कहा था, “मैंने मानवजाति को बनाया है और सम्पूर्ण मानवजाति का मार्गदर्शन किया है, और सम्पूर्ण मानवजाति को आज्ञा दी है”; क्या यह वास्तव में ऐसा नहीं था? क्या संभवतः ऐसा हो सकता है कि इन बातों का तुम्हारा अनुभव अपर्याप्त है? व्याख्या करने में जीवन भर के प्रयास व्यय करने के लिए तुम्हारे लिए “सेवा-टहल करनेवाले” वाक्यांश मात्र पर्याप्त होना चाहिए। वास्तविक अनुभव के बिना, किसी भी मनुष्य को मेरे बारे कभी भी पता नहीं चलेगा, मेरे वचनों के माध्यम से कभी भी मुझे जानने में समर्थ नहीं होगा। किन्तु आज मैं व्यक्तिगत रूप से तुम्हारे बीच आया हूँ: क्या यह बात मुझे जानना तुम्हारे लिए सुगम नहीं बनाएँगी? क्या ऐसा हो सकता है कि मेरा देहधारण तुम्हारे लिए उद्धार भी नहीं है? यदि मैं अपने स्वयं के व्यक्तित्व में मानवजाति में नहीं उतरा होता, तो सम्पूर्ण मानवजाति में बहुत पहले ही धारणाएँ व्याप्त हो गई होती, कहने का अर्थ है कि, शैतान की सम्पत्ति बन गई होती, क्योंकि तुम जिसमें विश्वास करते हो वह मात्र शैतान की छवि है और स्वयं परमेश्वर से उसका कुछ लेना-देना नहीं है। क्या यह मेरे द्वारा उद्धार नहीं है?
जब शैतान मेरे सामने आता है, तो मैं इसकी जंगली क्रूरता से पीछे नहीं हटता हूँ, न ही मैं उसकी करालता से भयभीत होता हूँ: मैं सिर्फ़ उसकी उपेक्षा करता हूँ। जब शैतान मुझे लालच देता है, मैं उसके फरेब की वास्तविक प्रकृति का पता लगा लेता हूँ, जिससे वह लज्जा और अपमानित हो कर चोरी से भाग जाता है। जब शैतान मुझसे लड़ता है और मेरे चुने हुए लोगों को हथियाने का प्रयास करता है, मैं अपनी देह में पूरी तरह से आ जाता हूँ; और अपनी देह में मैं अपने लोगों को बचाता और उनकी चरवाही करता हूँ ताकि वे आसानी से हारकर खो न जाएँ, और मार्ग में प्रत्येक कदम पर मैं उनकी अगवाई करता हूँ। जब शैतान हारकर दूर हो जाता है, तो मैं अपने लोगों में महिमा को प्राप्त करूँगा और मेरे लोग मेरी शानदार और मज़बूत गवाही देंगे। इसलिए, मैं अपनी प्रबंधन योजना में विषमताओं तो लूँगा और उन्हें हमेशा के लिए अपने पास से अथाह गड्डे में फेंक दूँगा। यही मेरी योजना है, यही मेरा कार्य है। तुम्हारे जीवन में, एक ऐसा दिन आएगा जब तुम इस प्रकार की परिस्थिति का सामना करोगेः क्या तुम स्वेच्छा से शैतान की क़ैद में अपने आप को पड़ने दोगे, या तुम अपने को मुझे प्राप्त करने दोगे? यह तुम्हारा स्वयं का भाग्य है, और तुम्हें इस पर सावधानी से विचार करना चाहिए।
राज्य में जीवन है लोगों का और स्वयं परमेश्वर का जीवन है। सम्पूर्ण मानवजाति मेरी देखभाल और सुरक्षा के अंदर रहती है, और सभी बड़े लाल ड्रैगन के साथ मौत की लड़ाई में लगे हुए हैं। इस अंतिम युद्ध को जीतने के उद्देश्य से, बड़े लाल ड्रैगन को समाप्त करने के उद्देश्य से, सभी लोगों को मेरे राज्य में अपना समस्त अस्तित्व मुझे समर्पित कर देना चाहिए। जब मैं “राज्य” कहता हूँ तो मेरा तात्पर्य है वह जीवन है जो प्रत्यक्ष रूप से दिव्यता की अधीन जीया जाता है, जिसमें सम्पूर्ण मानवजाति मेरे द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अगुवाई की जाती है, प्रत्यक्ष रूप से मेरे द्वारा प्रशिक्षित की जाती है, ताकि सम्पूर्ण मानवजाति के जीवन, यद्यपि अभी भी पृथ्वी पर हैं, ऐसे हों मानो कि स्वर्ग में हों, तीसरे स्वर्ग में जीवन का एक सच्चा मूर्तरूप। यद्यपि मैं अपनी देह में हूँ, फिर भी मैं शरीर की सीमाओं से पीड़ित नहीं हूँ। मैं मनुष्यों के बीच उनकी प्रार्थनाओं को सुनने के लिए कितनी बार आया हूँ, और उनके बीच कितनी बार मेरा चलना-फिरना हुआ है, मैंने उनकी प्रशंसाओं का आनन्द लिया है? यद्यपि मानवजाति मेरे अस्तित्व के बारे में कभी भी अवगत नहीं हुई है, फिर भी मैं इसी तरह से अपना कार्य करता हूँ। मेरे निवास स्थान में, जो कि ऐसा स्थान है जहाँ मैं छिपा हुआ हूँ, तथापि, अपने इस निवास स्थान में, मैंने अपने सभी शत्रुओं को हरा दिया है; अपने निवास स्थान में, मैंने पृथ्वी पर जीवन जीने का वास्तविक अनुभव प्राप्त कर लिया है; अपने निवास स्थान में, मैं मनुष्य के प्रत्येक वचन और कार्य की निगरानी कर रहा हूँ, और सम्पूर्ण मानव जाति को देख और आज्ञा दे रहा हूँ। यदि मानवजाति मेरे इरादों के लिए चिंता महसूस कर सके, जिससे मेरा हृदय संतुष्ट हो और मुझे आनन्द प्राप्त हो, तो मैं निश्चित रूप से समस्त मानवजाति को आशीष दूँगा। क्या मानवजाति के लिए यही मेरा इरादा नहीं है?
चूँकि मानवजाति अचैतन्य पड़ी हुई है, इसलिए यह केवल मेरी बिजली की गड़गड़ाहट के माध्यम से है कि मानवजाति अपने स्वप्नों से जागती है। वे अपनी आँखे खोलते हैं, तो कई लोगों की आँखें ठंडी चमक के विस्फोटों से इस स्थिति तक घायल हो जाती हैं कि वे अपना दिशा-बोध तक खो देते हैं, और नहीं जानते कि वे कहाँ से आए हैं न ही यह कि वे कहाँ जा रहे हैं। अधिकांश लोग लेज़र जैसी किरणों से मारे जाते हैं और परिणाम स्वरूप आँधी में जमा हुए ढेर में ढह जाते हैं, उनके शरीर, पीछे कोई निशान छोड़े बिना, प्रचंड धारा से बह जाते हैं। प्रकाश में, जीवित बचे लोग अंततः मेरा चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में समर्थ होते हैं, और केवल तभी उन्हें मेरे बाहरी प्रकटन के बारे में, उस बिन्दु तक कुछ पता चलता हैं जहाँ वे सीधे मेरे चेहरे को देखने का अब और साहस नहीं करते हैं, इस बात से गहराई से भयभीत रहते हैं कि कहीं मैं उन की देह पर एक बार और अपनी ताड़ना और श्राप न दे दूँ। कितने लोग बेकाबू होकर रोते हुए टूट जाते हैं? कितने लोग निराशा में पड़ जाते हैं? कितने लोग अपने रक्त से नदियाँ बना देते हैं? कितने लोग उद्देश्यहीन इधर-उधर बहती लाशें बन जाते हैं? कितने लोग, रोशनी में अपना स्वयं का स्थान ढूँढते हुए, अचानक दिल के दर्द की वेदना को महसूस करते हैं और लम्बे समय की बदकिस्मती के लिए अपने आँसू बहाते हैं? कितने लोग, रोशनी की मनहूस चमक के नीचे, अपनी अशुद्धता को स्वीकार करते हैं और आत्म-सुधार का संकल्प लेते हैं। कितने लोग, अंधे हो कर, जीवन का आनन्द खो चुके हैं और परिणामस्वरूप रोशनी पर ध्यान देने का मन नहीं रखते हैं, और इस प्रकार निरंतर निष्क्रिय बने रह कर अपने अंत का इंतजार करते हैं? और कितने लोग जीवन की पाल को ऊँचा उठा रहे हैं और, रोशनी के मार्गदर्शन के अधीन, उत्सुकता से अपने कल की आशा करते हैं?… आज, मानवजाति में से कौन इस अवस्था में विद्यमान नहीं है? कौन मेरी रोशनी के भीतर विद्यमान नहीं है? भले ही तुम मज़बूत हो, या माना कि तुम कमज़ोर हो, तब भी तुम मेरी रोशनी के आने से कैसे बच सकते हो?
मार्च 10,1992
फुट नोटः
क. मूल पाठ “का शीर्षक” छोड़ देता है।
राज्य का युग
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